Friday, October 10, 2014

मै पत्थर हु

मै राह में पड़ा रहा कई सदियों से 
कितने आये कितने चले गये 
किसी ने ठोकर मारी मुझको 
तो किसी ने रस्ते से ही हटा दिया 
किसीको ठोकर लगी मुझसे 
तो कोई ठोकर मार कर चला गया 
लेकिन मै था तन्हा तन्हा
और हर पल अकेला ही चलता गया
लोग कहते है बहुत ही हीन भावना से की मै पत्थर हु
हाँ मै पत्थर हु तो मेरी खता है क्या इसमें
किसी ने मारा मुझे किसी ने हटा दिया
मै तो बस इधर से उधर उधर से इधर लुढकता रहा
किसी को कुछ हुआ किसी ने कुछ किया तो मेरी संज्ञा दे दी गयी की वो पत्थर दिल है
लेकिन क्या मुझको दर्द नही होता
मुझे भी अकेलेपन का एहसास होता है
मुझे भी तन्हाइया तन्हा रातो में डराती है
मेरा भी मन होता है की मेरा कोई अपना हो
मै भी जिसका सपना बनू
किन्तु ये समाज संवेदनहीन हो गया
मुझ पत्थर में तो जान आ गयी
लेकिन ये जिन्दगी वाले कब पत्थर बन गये इसका संज्ञान इनको ही नही
चलो देखता हु कब तक दर्द सहता हु
कब तक तन्हा तडपता हु
कब तक लोग तड़पाते है
मै पत्थर नही हु ये बताना है
कुछ करके दिखाना है
श्री राम का इन्तजार कब तक करू मै
मै इंसान बन गया पत्थर से और ये जीते जागते पत्थर बन गये ये बताना है

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