Wednesday, October 29, 2014

यु ही गुमनाम शब्दों में खोके जाने कहा खो जाते है खुद से बेगाने होते होते जाने कब तेरे हो जाते है

यु ही गुमनाम शब्दों में खोके
जाने कहा खो जाते है
खुद से बेगाने होते होते
जाने कब तेरे हो जाते है

इक नयी सी दुनिया लगती है 
जिसमे जाने किससे बात करता हु
चलते चलते अनजान राहो में
उस हंसी ख्वाब से मुलाकात करता हु
मद्धम मद्धम थमती साँसों से
तेरे आगोश में खो जाते है
यु ही गुमनाम शब्दों में खोके
जाने कहा खो जाते है
खुद से बेगाने होते होते
जाने कब तेरे हो जाते है

कलम चलती रहती है
पर यादे नही थकती है
वो आती रहती है
मेरे एहसासों की दुनिया में कभी कभी
कभी खुसिया आती है इस दिल में
तो कभी विरह के बदल छाते है
जाने ये मन के पन्ने
क्यों ओझल से हो जाते है
यु ही गुमनाम शब्दों में खोके
जाने कहा खो जाते है
खुद से बेगाने होते होते
जाने कब तेरे हो जाते है

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