Tuesday, October 28, 2014

क्या मन इस पर्वत से भी विशाल है क्या ये आँखे समंदर से भी गहरी है क्या ये दिल धडकता है सिर्फ उनके लिए

क्या मन इस पर्वत से भी विशाल है 
क्या ये आँखे समंदर से भी गहरी है 
क्या ये दिल धडकता है सिर्फ उनके लिए 
क्या ये नदी के किनारे बने है
हमेशा जुदा रहने के लिए 
क्यों ये सूरज हमेशा तपता है 
क्यों ये अम्बर नही बरसता है
क्यों ये धड़कन उनको देखकर के
कभी मद्धम होकर के रुक जाती है
क्यों पास रहके खुशियों का जहां मिल जाता
और दूर जाते ही सारा जहां लुट जाता
क्यों विरह में पीड़ा होती है
ये आँखे रह रह के क्यू रोती हैं
क्यों मुझे तोड़ करके शीशे सा
बेरहम वक़्त होके गुजरा है
क्यों इस क्यों का सवाल ढूंढे ये दिल
क्या खत्म होगी नही इसकी कहानी

अनजान राहो में क्यों खोया मेरा निर्मल मन

तन्हा तन्हा लगता क्यों तुम बिन जीवन
तन्हा तन्हा लगता क्यों तुम बिन जीवन
तन्हा तन्हा लगता क्यों तुम बिन जीवन

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