Friday, October 10, 2014

बिखरा ख्वाब

रेत की जमी पर इक मकान हमने भी बनाया था 
अपने यादो के खूबसूरत लम्हों से उसको सजाया था 
बड़ी ताकीद की थी उनको उसमे लाने की 
कई तन्हा राते गुजारी थी बिन चंदा संग अँधेरी रातो में 

पल पल हर पल इक इक लम्हा मैंने संजोया था 
अपने प्यार के हर इक पल को प्यार की मोतियों संग पिरोया था
ना ही खबर थी हमे नाही मालूम था
की ढह जायेगा ये रेत का महल जिसपे हमने आसिया बनाया था
की ढह जायेगा ये रेत का महल जिसपे हमने आसिया बनाया था
पल हम खेलते थे पल में झूमते थे अपने ख्वाबो के संग
कभी वो मेरी बाहों में होंगे इस झरोखे के पास
कभी आंखमिचौली खेलेंगे उस दरवज्जे के पीछे हम
कभी चुपके से आवाज दे के हम बुलाएँगे
तो कभी कभी अपनी ही यादो में खो जायेंगे
फिर कानो में धीरे से आवाज एक आएगी
हम उनको वो हमको और हम एक दूजे में खो जायेंगे
लेकिन ये क्या आँख खुली नींद टूटी
हाय ये क्या मेरी किस्मत मुझसे रूठी
बिन पानी के मेरी क्यों लुटिया डूबी
बिन पानी के मेरी क्यों लुटिया डूबी

खूबसूरत वो ख्वाबो का गुलिस्ता हमने सजाया था
रेत की जमी पर इक मकान हमने भी बनाया था
अपने यादो के खूबसूरत लम्हों से उसको सजाया था

No comments: