Wednesday, October 15, 2014

बहुत दिन हो गये तुम्हारा कोई हाल चाल नही मिला 
ना ही कोई ख़त ना ही कोई संदेसा 
सोच रही की एक ख़त लिखू 
लेकिन मै उसमे क्या लिखू 
कैसे हो तुम मेरे बिन 
कैसे रहते है हम तुम बिन 
ना वक़्त गुजरता है ना लम्हे कटते है
तेरी याद में हम सारी सारी रात जगते है
कैसे गुजरा है तुम बिन ये सावन
कितना तडपा है विरह में मेरा मन
दो दिन से ये ख़त लिखती हु
बाते है की रूकती ही नही है
तुम एहसासों में सूनी बाहों में
फिर से सजा दो ये सूना मन
अब आ जाओ अब आ जाओ
खत मिलते ही तुम आ जाओ
तुम से जुदा अब रहना है मुस्किल
फिर से सजा दो ये सूना मन

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