Saturday, October 11, 2014

आज दिल बेचैन है तुम बिन

आज दिल बेचैन है तुम बिन 
आज के दिन भी जो दूर हु तुमसे मै
ये सात समंदर कई दीवारों की तरह है 
जिन्हें तोडना आज मेरे बस में नही है 
मन भारी भारी लग रहा है 
आज दिल बेचैन है तुम बिन 
गिला है आज खुदा से मुझे
जो उसने दूर किया खुद से
ये विरह की पीड़ा कैसी है
की इसमें जल रहे हर दिन
की इसमें जल रहे दिन दिन
थी बाहों में पनाहों में राहो में निगाहों में
हर लम्हों में तुम होती थी
मेरे दिन मेरी रातो में
आज खुद ही पडा तन्हा
हर मंजर हर लम्हा सूना

ये सिर्फ और सिर्फ मेरी अर्धांगिनी के लिए है जिससे इस पावन पर्व (करवा चौथ ) के अवसर पर उससे दूर हु और सायद मै मजबूर भी जो आज के दिन उससे मिल नही सकता सिर्फ और सिर्फ दीदार कर सकता हु वो भी दूर से मीलो दूर से आज मेरा मन भारी भारी भी लग रहा है और ये एहसास भी हो रहा की पहले छोटी छोटी बातो पर लड़ते झगड़ते थे लेकिन आज उस असीमित और एक दर्द भरे प्यार का एहसास हो रहा है
फिर भी वक़्त के आगे किसका जोर चलता है
लव दिल से
इ लव यू

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