Saturday, October 11, 2014

सोलह श्रृंगार से सजूँगी आज मै

सोलह श्रृंगार से सजूँगी आज मै
माथे पे चमकीली बिंदी और मांग में कुमकुम भरूँगी 
इंतज़ार पल पल करूंगी निर्मोही चन्दा का 
आज अपने पिया के बाहों का हार मै बनूंगी
आज अपने पिया के बाहों का हार मै बनूंगी

आस्था और विस्वास का प्रतीक है ये मिलन
आज इस नदी का होगा अपने सागर से संगम
अपने अंगना को सुन्दर रंगोली से सजाऊँगी
नन्ही बेले चारो कोनो में लगाउंगी
सारा दिन मै मंत्रोच्चार करूंगी
धैर्य की नदी बन के आज मै बहुंगी
आज अपने पिया के बाहों का हार मै बनूंगी

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