Wednesday, January 18, 2017

वो एक सहारा मेरे नन्हे हांथो के लिए तू जैसे सागर और मैं इक बूँद था माँ वो शब्द तुतलाते से मेरी जुबा के माँ तेरे बिन और कौन समझ सकता था माँ मैं चलता था जाने क्या क्या बोलता था जिनका मतलब खुद मुझे नही पता था माँ तुम सुनती थी और मुझ नासमझ को समझाती थी गर चलते चलते गिर जाऊ तो झट से गोदी में उठाती थी अब चलते चलते पैर थक जाते माँ गिर के खुद हम उठ जाते माँ फिर भी वो स्नेह और वो प्रेम का बंधन माँ जिसकी हर पल याद आ जाती है क्यों अब नही है वो पल क्यों नही वो बचपन अनजाना माँ जब रोते रोते चुप कराती थी अब सूख जाते है आंसू भी मद्धम हो जाती है साँसे भी फिर भी क्यों नही आती तुम ये कुछ पंक्तिया मेरी मम्मा और पापाजी के लिए जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हु और मैंने वास्तव में कभी भगवान् नही देखे पर मेरी नजर में मेरा मम्मी और पापा ही मेरे लिए भगवान् है उनसे बढ़कर मेरी छोटी सी दुनिया में और कोई नही है और मेरी हार्दिक इच्छा और मेरे जीवन का लक्ष्य यही है की मैं अपने से बड़े किसी भी आदरणीय जन को दुःख न पहुचाऊ सभी को स्नेह करू ज्यादा से ज्यादा लोगो के दिल में रह सकू

वो एक सहारा मेरे नन्हे हांथो के लिए
तू जैसे सागर और मैं इक बूँद था माँ
वो शब्द तुतलाते से मेरी जुबा के माँ
तेरे बिन और कौन समझ सकता था माँ
मैं चलता था जाने क्या क्या बोलता था
जिनका मतलब खुद मुझे नही पता था माँ
तुम सुनती थी और  मुझ नासमझ को समझाती थी
गर चलते चलते गिर जाऊ तो झट से गोदी में उठाती  थी
अब चलते चलते पैर थक जाते माँ
गिर के खुद हम उठ जाते माँ
फिर भी वो स्नेह
और वो प्रेम का बंधन माँ
जिसकी हर पल याद आ जाती है

क्यों अब नही है वो पल
क्यों नही वो बचपन अनजाना माँ
जब रोते रोते चुप कराती  थी
अब सूख जाते है आंसू भी
मद्धम हो जाती है साँसे भी
फिर भी क्यों नही आती तुम

ये कुछ पंक्तिया  मेरी मम्मा और पापाजी के लिए जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हु और मैंने वास्तव में कभी भगवान् नही देखे पर मेरी नजर में मेरा मम्मी और पापा ही मेरे लिए भगवान् है उनसे बढ़कर मेरी छोटी सी दुनिया में और कोई नही है
और मेरी हार्दिक इच्छा और मेरे जीवन का लक्ष्य यही है की मैं अपने से बड़े किसी भी आदरणीय जन को दुःख न पहुचाऊ सभी को स्नेह करू ज्यादा से ज्यादा लोगो के दिल में रह सकू

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