Friday, January 20, 2017

वही लोरी सुना दो माँ,,, जो रातों में सुनाती थी,,, मुझे आँचल में छिपा लो माँ,,, बहुत डर लगता है हमको,,, अब चलता हूँ,,,कुछ साँसे है,,, सफर भी नया है माँ,,, राहे भी होंगी अनजानी,,, तुम क्यों चुपचाप बैठी हो,,,, ,,,,,

वही लोरी सुना दो माँ,,,
जो रातों में सुनाती थी,,,
मुझे आँचल में छिपा लो माँ,,,
बहुत डर लगता है हमको,,,
अब चलता हूँ,,,कुछ साँसे है,,,
सफर भी नया है माँ,,,
राहे भी होंगी अनजानी,,,
तुम क्यों चुपचाप बैठी हो,,,,
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