Sunday, January 29, 2017

चाहे जो कुछ भी हो मेरी माँ तेरे आँचल का मन प्यासा,,,

कुछ तो हो रहा है,,,
जाने क्यों,,,
फिर भी चेहरे पे मुस्कान है,,,
है कोई रिश्ता नही तुमसे,,
पर जाने क्यों,,,
तेरी ही ओर खिंचा,,, चला आता है,,,
ये मेरा पागल मन,,,
मैंने शब्दों से कुछ नही बोला,,,
ना ही माँ,,,ना ही,,कुछ और,,
फिर भी तुम सबसे बढ़कर लगी,,,
जैसे सूना है तुम बिन जीवन,,,
आपके माथे की रेखा,,,
लड़खड़ाते से ये कदम,,,
जिनको जब जब मैं देखूँ,,,
भावुक हो जाए क्यों ये मन
,,,आपसे मुझको है आशा,,,
जाने कैसी ये परिभाषा,,,
या है कोई तमाशा,,,
चाहे जो कुछ भी हो मेरी माँ
तेरे आँचल का मन प्यासा,,,
तेरे आँचल का मन प्यासा,,

निर्मल अवस्थी
Earth Care foundation

Friday, January 20, 2017

वही लोरी सुना दो माँ,,, जो रातों में सुनाती थी,,, मुझे आँचल में छिपा लो माँ,,, बहुत डर लगता है हमको,,, अब चलता हूँ,,,कुछ साँसे है,,, सफर भी नया है माँ,,, राहे भी होंगी अनजानी,,, तुम क्यों चुपचाप बैठी हो,,,, ,,,,,

वही लोरी सुना दो माँ,,,
जो रातों में सुनाती थी,,,
मुझे आँचल में छिपा लो माँ,,,
बहुत डर लगता है हमको,,,
अब चलता हूँ,,,कुछ साँसे है,,,
सफर भी नया है माँ,,,
राहे भी होंगी अनजानी,,,
तुम क्यों चुपचाप बैठी हो,,,,
,,,,,

Thursday, January 19, 2017

आज रोया है इक माँ का आँचल,,, जाने कितने घरोंदे आज सूने है,,, दोष किसका है,,,ये जानते है सब,,,फिर भी उस माँ की मुश्कान ,,,अब लौटेगी नही,, हाँ शायद कभी नही,,, हे ईश्वर।।।।।।।।।

आज रोया है इक माँ का आँचल,,,
जाने कितने घरोंदे आज सूने है,,,
दोष किसका है,,,ये जानते है सब,,,फिर भी
उस माँ की मुश्कान ,,,अब लौटेगी नही,,
हाँ शायद कभी नही,,,

हे ईश्वर।।।।।।।।।

Wednesday, January 18, 2017

मन के चितवन में रहती हो क्यों दर्द दिलो के सहती हो धड़कन हो जाती जब मद्धम धीरे से जाने क्या कहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, हौले हौले से शामे ढली जब रात की आहट होने लगी उस धुंधले धुंधले अंधियारे में जुगनू सी टिम टिम करती हो मन के चितवन में रहती हो क्यों दर्द दिलो के सहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,, नैनों से सराहा है हर पल तुम बिन बहता ये गंगाजल नित अश्रुधारा में नहाते हम फिर भी तुम मुहब्बत करती हो मन के चितवन में रहती हो क्यों दर्द दिलो के सहती हो धड़कन हो जाती जब मद्धम धीरे से जाने क्या कहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

मन के चितवन  में रहती हो
क्यों दर्द दिलो के सहती हो
धड़कन हो जाती जब मद्धम
धीरे से जाने क्या कहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

हौले हौले से शामे ढली
जब रात की आहट होने लगी
उस धुंधले धुंधले अंधियारे में
जुगनू सी टिम टिम करती हो
मन के चितवन  में रहती हो
क्यों दर्द दिलो के सहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

नैनों से सराहा है हर पल
तुम बिन बहता ये गंगाजल
नित अश्रुधारा में नहाते हम
फिर भी तुम मुहब्बत करती हो
मन के चितवन  में रहती हो
क्यों दर्द दिलो के सहती हो
धड़कन हो जाती जब मद्धम
धीरे से जाने क्या कहती हो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

थोड़ी देर कुछ और चलने दो धडकनों को तुम अपनी थमने से पहले आ जाऊंगा ये मेरा वादा है तुमसे

थोड़ी देर कुछ और चलने दो
धडकनों को तुम अपनी
थमने से पहले आ जाऊंगा
ये मेरा वादा है तुमसे

वो एक सहारा मेरे नन्हे हांथो के लिए तू जैसे सागर और मैं इक बूँद था माँ वो शब्द तुतलाते से मेरी जुबा के माँ तेरे बिन और कौन समझ सकता था माँ मैं चलता था जाने क्या क्या बोलता था जिनका मतलब खुद मुझे नही पता था माँ तुम सुनती थी और मुझ नासमझ को समझाती थी गर चलते चलते गिर जाऊ तो झट से गोदी में उठाती थी अब चलते चलते पैर थक जाते माँ गिर के खुद हम उठ जाते माँ फिर भी वो स्नेह और वो प्रेम का बंधन माँ जिसकी हर पल याद आ जाती है क्यों अब नही है वो पल क्यों नही वो बचपन अनजाना माँ जब रोते रोते चुप कराती थी अब सूख जाते है आंसू भी मद्धम हो जाती है साँसे भी फिर भी क्यों नही आती तुम ये कुछ पंक्तिया मेरी मम्मा और पापाजी के लिए जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हु और मैंने वास्तव में कभी भगवान् नही देखे पर मेरी नजर में मेरा मम्मी और पापा ही मेरे लिए भगवान् है उनसे बढ़कर मेरी छोटी सी दुनिया में और कोई नही है और मेरी हार्दिक इच्छा और मेरे जीवन का लक्ष्य यही है की मैं अपने से बड़े किसी भी आदरणीय जन को दुःख न पहुचाऊ सभी को स्नेह करू ज्यादा से ज्यादा लोगो के दिल में रह सकू

वो एक सहारा मेरे नन्हे हांथो के लिए
तू जैसे सागर और मैं इक बूँद था माँ
वो शब्द तुतलाते से मेरी जुबा के माँ
तेरे बिन और कौन समझ सकता था माँ
मैं चलता था जाने क्या क्या बोलता था
जिनका मतलब खुद मुझे नही पता था माँ
तुम सुनती थी और  मुझ नासमझ को समझाती थी
गर चलते चलते गिर जाऊ तो झट से गोदी में उठाती  थी
अब चलते चलते पैर थक जाते माँ
गिर के खुद हम उठ जाते माँ
फिर भी वो स्नेह
और वो प्रेम का बंधन माँ
जिसकी हर पल याद आ जाती है

क्यों अब नही है वो पल
क्यों नही वो बचपन अनजाना माँ
जब रोते रोते चुप कराती  थी
अब सूख जाते है आंसू भी
मद्धम हो जाती है साँसे भी
फिर भी क्यों नही आती तुम

ये कुछ पंक्तिया  मेरी मम्मा और पापाजी के लिए जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हु और मैंने वास्तव में कभी भगवान् नही देखे पर मेरी नजर में मेरा मम्मी और पापा ही मेरे लिए भगवान् है उनसे बढ़कर मेरी छोटी सी दुनिया में और कोई नही है
और मेरी हार्दिक इच्छा और मेरे जीवन का लक्ष्य यही है की मैं अपने से बड़े किसी भी आदरणीय जन को दुःख न पहुचाऊ सभी को स्नेह करू ज्यादा से ज्यादा लोगो के दिल में रह सकू

दवा भी तुम हो दर्द भी तुम हो दूर होती हो तो दर्द बन जाती हो पास आते ही सुकून दे जाती हो

दवा भी तुम हो दर्द भी तुम हो
दूर होती हो तो दर्द बन जाती हो
पास आते ही सुकून दे जाती हो

तुम बिन जीवन जैसे काटो की सेज है मेरे लिए जो हर पल मेरे मन में चुभती रहती है

तुम बिन जीवन जैसे काटो की सेज है मेरे लिए
जो हर पल मेरे मन में चुभती रहती है

Monday, January 16, 2017

प्रणाम का महत्व

प्रणाम का महत्व
महाभारत का युद्ध चल रहा था -
एक दिन दुर्योधन के व्यंग्य से आहत होकर "भीष्म पितामह" घोषणा कर देते हैं कि -

"मैं कल पांडवों का वध कर दूँगा"

उनकी घोषणा का पता चलते ही पांडवों के शिविर में बेचैनी बढ़ गई -

भीष्म की क्षमताओं के बारे में सभी को पता था इसलिए सभी किसी अनिष्ट की आशंका से परेशान हो गए|

तब -

श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा अभी मेरे साथ चलो -

श्री कृष्ण द्रौपदी को लेकर सीधे भीष्म पितामह के शिविर में पहुँच गए -

शिविर के बाहर खड़े होकर उन्होंने द्रोपदी से कहा कि - अन्दर जाकर पितामह को प्रणाम करो -

द्रौपदी ने अन्दर जाकर पितामह भीष्म को प्रणाम किया तो उन्होंने -
"अखंड सौभाग्यवती भव" का आशीर्वाद दे दिया , फिर उन्होंने द्रोपदी से पूछा कि !!

"वत्स, तुम इतनी रात में अकेली यहाँ कैसे आई हो, क्या तुमको श्री कृष्ण यहाँ लेकर आये है" ?

तब द्रोपदी ने कहा कि -

"हां और वे कक्ष के बाहर खड़े हैं" तब भीष्म भी कक्ष के बाहर आ गए और दोनों ने एक दूसरे से प्रणाम किया -

भीष्म ने कहा -

"मेरे एक वचन को मेरे ही दूसरे वचन से काट देने का काम श्री कृष्ण ही कर सकते है"

शिविर से वापस लौटते समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि -

"तुम्हारे एक बार जाकर पितामह को प्रणाम करने से तुम्हारे पतियों को जीवनदान मिल गया है " -

" अगर तुम प्रतिदिन भीष्म, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, आदि को प्रणाम करती होती और दुर्योधन- दुःशासन, आदि की पत्नियां भी पांडवों को प्रणाम करती होंती, तो शायद इस युद्ध की नौबत ही न आती " -
......तात्पर्य्......

वर्तमान में हमारे घरों में जो इतनी समस्याए हैं उनका भी मूल कारण यही है कि -

"जाने अनजाने अक्सर घर के बड़ों की उपेक्षा हो जाती है "

" यदि घर के बच्चे और बहुएँ प्रतिदिन घर के सभी बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लें तो, शायद किसी भी घर में कभी कोई क्लेश न हो "

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता -

"निवेदन 🙏 सभी इस संस्कृति को सुनिश्चित कर नियमबद्ध करें तो घर स्वर्ग बन जाय।"

*क्योंकि*:-

*प्रणाम प्रेम है।*
*प्रणाम अनुशासन है।*
प्रणाम शीतलता है।             
प्रणाम आदर सिखाता है।
*प्रणाम से सुविचार आते है।*
प्रणाम झुकना सिखाता है।
प्रणाम क्रोध मिटाता है।
प्रणाम आँसू धो देता है।
*प्रणाम अहंकार मिटाता है।*
*प्रणाम हमारी संस्कृति है।*

       सबको प्रणाम

सच में जब अपनो का साथ मिलता है तो असीमित शक्ति का एहसास होता है,,,जो मेरे सहकर्मियों और मित्रो की वजह से मुझे मिली ,,,,सच में इनके बिना मैं कुछ भी नही,,,और शायद ये भी ,,इसी लिए ये रिश्तों की डोर ,,,मोती की माला जैसी है जिनमे नित नई मोतियां जुड़ती जा रही है,,,मेरे अपनों के रूप में ,,,जिनमे हर नया रिश्ता मेरे लिए ,,,और मेरी जिन्दगी के लिए अप्रतिम है,,,ये अनुभव भी सच में अद्भुत है ,,,, जहाँ सब अपने है,,कोई पराया नही,,,, जहां सिर्फ प्रेम है,,,द्वेष नही,,, जहां गैर होकर भी अपनों से बढ़कर है,,और कोई गैर नही,,, बस मैं यही कहूंगा Love you jindgi,,,,, Regards Earth care foundation Nirmal kumar awasthi

सच में जब अपनो का साथ मिलता है तो असीमित शक्ति का एहसास होता है,,,जो मेरे सहकर्मियों और मित्रो की वजह से मुझे मिली ,,,,सच में इनके बिना मैं कुछ भी नही,,,और शायद ये भी ,,इसी लिए ये रिश्तों की डोर ,,,मोती की माला जैसी है जिनमे नित नई मोतियां जुड़ती जा रही है,,,मेरे अपनों के रूप में ,,,जिनमे हर नया रिश्ता मेरे लिए ,,,और मेरी जिन्दगी के लिए अप्रतिम है,,,ये अनुभव भी सच में अद्भुत है ,,,,
जहाँ सब अपने है,,कोई पराया नही,,,,
जहां सिर्फ प्रेम है,,,द्वेष नही,,,
जहां गैर होकर भी अपनों से बढ़कर है,,और कोई गैर नही,,,

बस मैं यही कहूंगा

Love you jindgi,,,,,

Regards
Earth care foundation
Nirmal kumar awasthi

Sunday, January 15, 2017

मुझे इतना ना सताओ यारो,,, जरा पास तो आओ यारो,,, कुछ जो अजनबी सा है कोई,,, फ़िक्र जिसकी रहती है हमेशा,,, उसको भी अपना हमदम,,, अपनी यादों में सजा लो यारों,,, निर्मल अवस्थी

मुझे इतना ना सताओ यारो,,,
जरा पास तो आओ यारो,,,
कुछ जो अजनबी सा है कोई,,,
फ़िक्र जिसकी रहती है हमेशा,,,
उसको भी अपना हमदम,,,
अपनी यादों में सजा लो यारों,,,

निर्मल अवस्थी

Saturday, January 14, 2017

मुझे हीरे- जवाहरात से कोई लगाव नही,,, क्योंकि,,, मेरी धड़कने आज भी ,,, मिटटी के खिलौनों में बसती हैं,,,,

मुझे हीरे- जवाहरात से कोई लगाव नही,,,
क्योंकि,,,
मेरी धड़कने आज भी ,,,
मिटटी के खिलौनों में बसती हैं,,,,
Nirmal Kumar Awasthi

मेरी इतनी तनख्वाह नही ,,,,, कि बना सकूँ,,, लाखों के महल,,,, इसिलिए इन सिक्कों से,,, कुछ खुशियाँ खरीदता हूँ,,,,, और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,, हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,, किसी के सामने खुद बनकर,,,मजाक,, उसके होंठो,,,की हंसी बन जाता हूँ,,,, कभी कभी उनके आँखों पर रखकर हाँथ,, उनके गम भी मैं पोंछ लेता हूँ,,, और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,, हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,, मेरे पास भी है कुछ ख़ास नही,,,, पर दिल की दौलत भी क्या खूब दी है ख़ुदा ने,,,, जिसमे मैं खुद को भूल जाता हूँ जब थामता हूँ मैं उन कांपते हांथो को,, जाने किस छुअन को एहसास करता हूँ,,, कल कोई नही था जहां में मेरा,,,,, इन ढेरों रिश्तों के साथ रहता हूँ और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,, हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,, मेरी इतनी तनख्वाह नही ,,,,, कि बना सकूँ,,, लाखों के महल,,,, इसिलिए इन सिक्कों से,,, कुछ खुशियाँ खरीदता हूँ,,,,,

मेरी इतनी तनख्वाह नही ,,,,,
कि बना सकूँ,,, लाखों के महल,,,,
इसिलिए इन सिक्कों से,,,
कुछ खुशियाँ खरीदता हूँ,,,,,
और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,,
हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,,
किसी के सामने खुद बनकर,,,मजाक,,
उसके होंठो,,,की हंसी बन जाता हूँ,,,,
कभी कभी उनके आँखों पर रखकर हाँथ,,
उनके गम भी मैं पोंछ लेता हूँ,,,
और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,,
हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,,

मेरे पास भी है कुछ ख़ास नही,,,,
पर दिल की दौलत भी क्या खूब दी है ख़ुदा ने,,,,
जिसमे मैं खुद को भूल जाता हूँ
जब थामता हूँ मैं उन कांपते हांथो को,,
जाने किस छुअन को एहसास करता हूँ,,,
कल कोई नही था जहां में मेरा,,,,,
इन ढेरों रिश्तों के साथ रहता हूँ
और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,,
हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,,

मेरी इतनी तनख्वाह नही ,,,,,
कि बना सकूँ,,, लाखों के महल,,,,
इसिलिए इन सिक्कों से,,,
कुछ खुशियाँ खरीदता हूँ,,,,,
और इनको रखकर दिल की बैंक में ,,,,ऐ जिंदगी,,
हज़ारों खुशियों में बाँट देता हूं,,,,,

Friday, January 13, 2017

तेरी यादे,,, तेरी बाते,,,, तेरे संग बीती,,,वो रातें,,, आज भी तन्हा तेरे बिन,, मुझको सोने नही देती,,, मुझको सोने नही देती,,,,

तेरी यादे,,, तेरी बाते,,,,
तेरे संग बीती,,,वो रातें,,,
आज भी तन्हा तेरे बिन,,
मुझको सोने नही देती,,,
मुझको सोने नही देती,,,,

बहुत कुछ याद कर कर के,,, बहुत कुछ भूल जाते है,, पर,,,, तेरी यादे हंसकरके,,, मुझे कितना रुलाती है,,, बस यही गम,,,है हमको,,,,, जिसको ना भूल पाते है,,, #बीतीयादे

बहुत कुछ याद कर कर के,,,
बहुत कुछ भूल जाते है,,
पर,,,,
तेरी यादे हंसकरके,,, मुझे कितना रुलाती है,,,
बस यही गम,,,है हमको,,,,,
जिसको ना भूल पाते है,,,
#बीतीयादे

Thursday, January 12, 2017

जाने क्यों विलुप्त से हो रहे है,,,, पोखर,,,ताल,,तलैया,,, जीवन  डोर थी बंधी जो इनसे,,, ना जाने कैसे छूट गयी,,,, जाने कैसी लहर है ये,,, चारो तरफ छाया तमस है,,,

जाने क्यों विलुप्त से हो रहे है,,,,
पोखर,,,ताल,,तलैया,,,
जीवन  डोर थी बंधी जो इनसे,,,
ना जाने कैसे छूट गयी,,,,
जाने कैसी लहर है ये,,,
चारो तरफ छाया तमस है,,,

Wednesday, January 11, 2017

जिसके पास खोने के लिए कुछ भी ना हो,,,उसको कैसा भय,, कैसा शोक,,कैसा प्रलाप,,,

जिसके पास खोने के लिए कुछ भी ना हो,,,
उसको कैसा भय,,
कैसा शोक,,
कैसा प्रलाप,,,
ना ही कोई हर्ष,,,
ना प्रेम,,,
ना विरोध,,,
ना आक्रोश,,,,
ना विरह की पीड़ा,,
फिर भी कुछ है,,,
जो जीने नही देता,,,
जैसे,,,
जाने कहाँ खोया है मेरा साँवरा,,,
मेरा कृष्णा,,,

Friday, January 6, 2017

https://www.facebook.com/nirmalawasthi786/

https://www.facebook.com/nirmalawasthi786/

एक लेखक का जीवन भी कुम्हार से कितना मिलता जुलता है,,,

एक लेखक का जीवन भी कुम्हार से कितना मिलता जुलता है,,,बस अपने में ही रमे रहते है ,,,मेरे विचार,,कुम्हार की मिट्टी की तरह है,,जिनको कभी अपने कोमल मन में उठे भावो से मिलाता हु ,,,तो कभी ख़ुशी के आंसुओं से उस मिटटी को सानता हु,,,,जब कभी व्यग्र होता है मन तो बस बरसती आँखों से मन मथता रहता है,,,और उसके ताप से कई अनकहे शब्दों की उत्पत्ति होती है,,,,जिन्हें मैं कुम्हार की चाक रुपी कोरी किताब पर ढालने की कोशिश में लग जाता हूं,,कभी कभी जैसा चाहता हु ,,,वैसा ही आकार लेती है,,,मेरे विचारों की मिट्टी,,,और कभी कभी टेढ़ी मेढ़ी,, सरंचना बनकर रह जाती है ,,,मेरी कविता,,,
तो कभी कभी कल्पना से परे कुछ ऐसा रच जाता है ,,जो आश्चर्यजनक होता है मेरे लिए,,,उसको धीरे धीरे मन के ताप,,,तो कभी उठने वाले भयानक ज्वार से पकाता हु,,,और फिर क्या तैय्यार हो जाती है एक रचना,,,जो खरीददार पर निर्भर करती है ,,,वो जांचता है ,,,परखता है,,फिर कभी घूरती हुई आँखों से चला जाता है,,तो कभी मुस्करा कर कह देता है कि वाह,,, वाह ,,,,पर मेरे लिए मेरी हर रचना अमूल्य धरोहर की तरह होती है ,,,और सच में जैसे कुम्हार भाई के लिए उसकी सारी पूँजी,,,उसके सुख दुख,,,उसकी मिट्टी,,, वो पानी,,और उसकी चाक ,,,सबकुछ है,,,ठीक उसी प्रकार,, हमारा निश्छल मन,,,,उसमे उठने वाले विचार,,,और उन विचारों को पिरोकर या गूंथकर बनी हुई मेरी कल्पना,,,मेरी रचना,,,मुझे अत्यंत ही प्रिय है,,,इसीके साथ साथ बचपन से ही मेरी सामाजिक कार्यों में रुचि रही,,पहले अपनी समझ के अनुसार मैं करता रहता था,,कभी किसी रोते को हंसाकर,,तो कभी किसी अज़नबी को अपना बनाकर ,,कभी किसी सूने आंगन में नन्हें नन्हे,,पौधों को लगाकर ,,और ये सिलसिला आज भी चल रहा है ,,और ये बात सच है कि अकेले किसी मंजिल को तय करना आसान नही,,लोगों का साथ मिल जाये तो मजेदार हो जाती है ,,इसीलिए मैंने अपनी NGO रजिस्टर कराई ,, EARTHCARE FOUNDATION NGO (A PROMISE TO KEEP OUR PLANET CLEAN AND GREEN) , इससे मेरा हौसला भी बढ़ा और लोगों का प्यार भी मिला ,,अब यही मेरा सपना है जिसको साथ लेकर चलना है अपनी धरती को हरा भरा रखने के लिए जो भी संभव प्रयास होंगे वो करना है,,,बस यही है मेरी कहानी,,,

Thanking you
With best regards
Nirmal kumar awasthi
Executive (QA-HIL)
GOLAN, Gujarat

FOUNDER
EARTHCARE FOUNDATION NGO
(A PROMISE TO KEEP OUR PLANET CLEAN AND GREEN)
www.earthcarengo.org

https://www.facebook.com/earthcarengo/

Thursday, January 5, 2017

मुस्कराहट और ख़ुशी आये तो कभी रोकना नही चाहिए,,,,बस इन लम्हो का दिल से आनंद उठाना चाहिए,,,और ईश्वर को आभार प्रकट करना चाहिए,, जय श्री कृष्णा निर्मल अवस्थी

मुस्कराहट और ख़ुशी आये तो कभी रोकना नही चाहिए,,,,बस इन लम्हो का दिल से आनंद उठाना चाहिए,,,और ईश्वर को आभार प्रकट करना चाहिए,,

जय श्री कृष्णा
निर्मल अवस्थी

Tuesday, January 3, 2017

सच में प्यार करने के बहाने हमे ढूंढने की जरूरत आज तक नही पड़ी घर में ,,,अपने परिवार के संग ,,उसके साथ साथ हमारे सिद्धि और शिवा,,, काम पर मेरे साथ काम करने वाले जो मुझसे छोटे वो मेरे भाई जैसे जिनको मैं हमेशा हंसाता रहता हूं,,,कंपनी से बाहर भी सब अपने से लगते है जो भी निश्छलता से मुझसे बात करता है उन सभी लोगो से अकारण ही एक अलग सा लगाव हो जाता है,,,,फिर पता नही क्यों लोग ,,, जात पात,,, धर्म,,, भेद भाव,,, अपना पराया,,, तेरा,,,मेरा करने में ये अनमोल जीवन व्यर्थ में नष्ट कर देते है,,,, मेरा आशय मात्र इतना ही हैं कि मात्र कुछ लोगों के बहकावे में आकर या ,,,अपने अभिमान,,,और जिद के कारण,,,अपने जिंदगी के अनमोल लम्हो को ,,,,नष्ट कर देते हैं,,, अपने लिए नही तो कम से कम अपने अखण्ड देश की गरिमा बनाये रखने के लिए,,,,कम से कम ये सरल कार्य कर ही सकते है जय हिन्द जय भारत

सच में प्यार करने के बहाने हमे ढूंढने की जरूरत आज तक नही पड़ी घर में ,,,अपने परिवार के संग ,,उसके साथ साथ हमारे सिद्धि और शिवा,,, काम पर मेरे साथ काम करने वाले जो मुझसे छोटे वो मेरे भाई जैसे जिनको मैं हमेशा हंसाता रहता हूं,,,कंपनी से बाहर भी सब अपने से लगते है जो भी निश्छलता से मुझसे बात करता है उन सभी लोगो से अकारण ही एक अलग सा लगाव हो जाता है,,,,फिर पता नही क्यों लोग ,,,
जात पात,,,
धर्म,,,
भेद भाव,,,
अपना पराया,,,
तेरा,,,मेरा करने में ये अनमोल जीवन व्यर्थ में नष्ट कर देते है,,,,

मेरा आशय मात्र इतना ही हैं कि मात्र कुछ लोगों के बहकावे में आकर या ,,,अपने अभिमान,,,और जिद के कारण,,,अपने जिंदगी के अनमोल लम्हो को ,,,,नष्ट कर देते हैं,,,
अपने लिए नही तो कम से कम अपने अखण्ड देश की गरिमा बनाये रखने के लिए,,,,कम से कम ये सरल कार्य  कर ही सकते है

जय हिन्द
जय भारत

निर्मल अवस्थी

Monday, January 2, 2017

जब मनुष्य ही मनुष्यता का अंत करने लगे ,,,तो उस परिस्थिति में ,,,,सम्पूर्ण धरा की धरोहर बचाना अत्यंत ही कठिन होता है,,,, चाहे वो हमारी संस्कृति हो,,, या हमारा आस्तित्व,,,, निर्मल अवस्थी

जब मनुष्य ही मनुष्यता का अंत करने लगे ,,,तो उस परिस्थिति में ,,,,सम्पूर्ण धरा की धरोहर बचाना अत्यंत ही कठिन होता है,,,,
चाहे वो हमारी संस्कृति हो,,,
या हमारा आस्तित्व,,,,

निर्मल अवस्थी

शिव जी को मानता हूं,,,जो भगवान है,, मैं मुहम्मद साहब को भी मानता हूं,,,जो खुदा के भेजे हुए पैगम्बर है,,, मैं यीसु मसीह को मानता हूं,,,जिन्हें हम गॉड कहते है,, मैं गुरुनानक देव को मानता हूं,,,जो सच्चे बाद्शाह है ना मेरे विचार ,,,कट्टर है,, ना मेरी आदत में जिद,,,, मेरी भाषा भी शहद जैसी मीठी है,,, हर किसी के लिए ह्रदय,,,संवेदनशील मन में करुणा भी है,,,और छोटों के लिए क्षमा भी,,, इसीलिए मैं शायद हम में परिवर्तित हो गया,,, और सबको जानने लगा जिससे जान पहचान थी उसको,,, और जिससे अंजान थे उसको भी,,, जय हिंद जय भारत सबका भारत अपना भारत अखंड भारत अद्भुत भारत निर्मल अवस्थी

मैं शिव जी को मानता हूं,,,जो भगवान है,,
मैं मुहम्मद साहब को भी मानता हूं,,,जो खुदा के भेजे हुए पैगम्बर है,,,
मैं यीसु मसीह को मानता हूं,,,जिन्हें हम गॉड कहते है,,
मैं गुरुनानक देव को मानता हूं,,,जो सच्चे बाद्शाह है
ना मेरे विचार ,,,कट्टर है,,
ना मेरी आदत में जिद,,,,
मेरी भाषा भी शहद जैसी मीठी है,,,
हर किसी के लिए ह्रदय,,,संवेदनशील
मन में करुणा भी है,,,और छोटों के लिए क्षमा भी,,,
इसीलिए मैं शायद हम में परिवर्तित हो गया,,,
और सबको जानने लगा
जिससे जान पहचान थी उसको,,,
और जिससे अंजान थे उसको भी,,,

जय हिंद
जय भारत
सबका भारत
अपना भारत
अखंड भारत
अद्भुत भारत

निर्मल अवस्थी

Sunday, January 1, 2017

मैं हमेशा गतिशील रहता हूं ,,,, हमेशा अपने विचारों में,,,

मैं हमेशा गतिशील रहता हूं ,,,,
हमेशा अपने विचारों में,,,
मैं हमेशा जागते हुए खोया रहता हूं,,,,
हमेशा अपने ख्यालों में,,,
दिन में भी आते रहते है,,,,दिवास्वप्न मुझको,,,
राते कट जाती है मेरी,,,तारो को गिन गिन कर,,
हंसते हंसते ही रोने लगता,,,हूँ,,जब तुझे याद करता है मेरा दिल,,,
मैं हमेशा महसूस करता रहता हूँ,,,
कभी अपनी कलम के साथ,,,तो कभी अपनी डायरी में,,,

सच में प्यार,,,,बिना एहसास,,,के,,,,शायद,,,संभव नही है,,, निर्मल अवस्थी

सच में प्यार,,,,बिना एहसास,,,के,,,,शायद,,,संभव नही है,,,
निर्मल अवस्थी