Wednesday, July 9, 2014

क्यों अपनी ही राह में हम मुसाफिर की तरह है

क्यों अपनी ही राह में हम मुसाफिर की तरह है
मुहब्बत को अपना आशियाना बना ले गर
मंजिले है बहुत इस राह में
कुछ सीधी है कुछ टेढ़ी है
कुछ का नहीं है पता तो
कुछ खुद ढूंढ  रही  है अपने पते को
मुहब्बत को अपना आशियाना बना ले गर
मंजिले है बहुत इस राह में
कुछ सीधी है कुछ टेढ़ी है
कुछ का नहीं है पता तो
कुछ खुद ढूंढ  रही  है अपने पते को 

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