Friday, July 11, 2014

एक चाय मिल जाती तो शाम और दिलनशी हो जाती

एक चाय  मिल जाती तो
शाम और दिलनशी हो जाती
यहाँ मौसमी बारिस तो नही है
लेकिन ये मन फिर भी भीग  गया
जो तू नही मिली मुझे
गर तेरी यादे मिल जाती तो
सायद ये जिंदगी रंगीन हो जाती
हाँ तुमसे दूर हूँ मै फिर भी
पास यादें है तुम्हारी
और तन्हा ये आलम है
चांदनी रात भी कुछ याद दिला रही है मुझे
कुछ तो है और कुछ जो नही है
बस इसी कस्मकस में तड़पता है ये दिल
हाँ सुकु है थोड़ा ही सही
देखते है ये इंतज़ार कितना सितम ढाता है
ऐसी ही कुछ उन्सुल्झी पहेली है
तभी जिंदगी मेरी इतनी अकेली है
तो चलो अपनी चाय का ही सहारा लेते है
कुछ पल ही सही इसीके बहाने कुछ यादो को अपना बनाते है 

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