Thursday, July 24, 2014

सावन घुमड़ घुमड़ बरसे
मेघा ये घम घम घम गरजे
बूंदे भी नृत्य करे छम छम
मन में जैसे प्रेम रस बरसे
नैनो में नसा सा छाने लगा
कोई बेगाना अपना बनाने  लगा
उस बारिश में ऐसे भीगी
जैसे सारी दुनिया लगे फीकी
एक वो है संग मै भी हु
और सारे जहां में कोई नही
इस प्रीत की रीत को कैसे कहे
जैसे प्रेम में हो गयी मै बावरी
लत इत उत डोले
कैसी रुत ये चले
नैनो का दरवज्जा न खोले
ये कुँढि लाज की लग गई
इसको कैसे खोले कैसे खोले
सावन घुमड़ घुमड़ बरसे
मेघा ये घम घम घम गरजे
बूंदे भी नृत्य करे छम छम
मन में जैसे प्रेम रस बरसे  

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