Thursday, October 27, 2016

बस खत्म हो गयी मेरी अधूरी कहानी

नदी के इस छोर पर बैठा था मैं,,
रोज जाता था उस ढलते हुए सूरज को देखने,,,,
एक दिन अचानक मेरी नजर दुसरे छोर पर गयी ,,
जहां एक धुंधली सी तस्वीर दिखी मुझे ,,,
शायद वो कोई परी थी 
कुछ पल मैं उसे देखता रहा 
निहारता रहा 
फिर मुझे लगा की वो भी मुझे देख रही ,,,
ये सिलसिला चलने लगा
कुछ दिनों तक चलता रहा 
हम एक दुसरे से आँखों से बात करते 
जैसे एक दूसरे के एहसास मिश्री की तरह 
हममे घुल गये हो 
लेकिन हम नदी के दो किनारों से बढ़कर कुछ नही थे 
धीरे धीरे बेचैनी सी होने लगी 
शायद अब मिलने की इच्छा हमारे
ह्रदय में जाग्रत होने लगी थी 
पर नदी बहुत ही विशाल थी 
नाही कोई नाव ,,,नाही कोई सहारा ,,
पल ही पल में ह्रदय स्नेह से भर जाता 
बेसब्री सताने लगती 
एक दिन सोचा की कैसे भी हम मिलकर रहेंगे 
चल दिए मटकी को सहारा बनाकर 
एक अबोध बालक की तरह 
बस खत्म हो गयी मेरी अधूरी कहानी 
बस खत्म हो गयी मेरी अधूरी कहानी 

ek muskaan: #कृपयाचीनीवस्तुओकाबहिस्कारकरे

ek muskaan: #कृपयाचीनीवस्तुओकाबहिस्कारकरे: अजीब है हमारी मानशिकता की हमअपनी आदतोंसे इतना ग्रस्तहै  भ्रष्ट,गंदे,लापरवाह जैसा तमगा चीनसे लेनापड़ रहाहै  # कृपयाचीनीवस्तुओकाबहिस्कारकरे ...

ek muskaan: सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,, या मेरे निश्छल मन ...

ek muskaan: सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,, या मेरे निश्छल मन ...: सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,, या मेरे निश्छल मन ,,की पुकार ,,, जिनकी राह तकते रहते है ,,नैन हमारे ,, की तुम आओगी मिलने ,,,मुझसे,, ...

सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,, या मेरे निश्छल मन ,,की पुकार ,,, जिनकी राह तकते रहते है ,,नैन हमारे ,,

सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,,
या मेरे निश्छल मन ,,की पुकार ,,,
जिनकी राह तकते रहते है ,,नैन हमारे ,,
की तुम आओगी मिलने ,,,मुझसे,,
यही सोचते रहते है ,,,,बस यही सोचते रहते है ,,,
तुम बदल गयी हो ,,
या समय,,
या ये भाग्य,,,,
दीपक धुंधला हो रहा ,,,आशाओं का 
या मन के स्नेह का ,,,मन से हुआ विलुप्त,,
कुछ तो है जो रह रह कर,,,
बाट तके ,,,ये नैन के द्वारे ,,
अनुभव भी है ,,,
जो अनभिज्ञ है शायद,,
तुमसे या तुम्हारे स्नेह से 
किन्तु फिर भी ,,,वही आँचल,,
वही सावन,,,
वही मौसम,,
वही है हम 
बस आ जाओ तुम ,,,
मेरे सपनो के मंदिर में 
मेरी सूनी तन्हा राह में ,,,ओ मेरे सावरे 
मैं तेरी राधिका और ये नयन बावरे ,,,
सच में अतीत के पन्ने ,,है वो ,,
या मेरे निश्छल मन ,,की पुकार ,,,
जिनकी राह तकते रहते है ,,नैन हमारे ,,

मेरी सूनी तन्हा राह में ,,,ओ मेरे सावरे 
मैं तेरी राधिका और ये नयन बावरे ,,,

#कृपयाचीनीवस्तुओकाबहिस्कारकरे

अजीब है हमारी मानशिकता
की हमअपनी आदतोंसे इतना ग्रस्तहै 
भ्रष्ट,गंदे,लापरवाह जैसा तमगा चीनसे लेनापड़ रहाहै 
#कृपयाचीनीवस्तुओकाबहिस्कारकरे

मोहब्बत की बेरुखी भी क्या अजीब हुई हमपर की जिन्हें भी चाहा दिलसे वो बेवफा ही निकले #बेवफामुहब्बत

मोहब्बत की बेरुखी भी क्या अजीब हुई हमपर 
की जिन्हें भी चाहा दिलसे 
वो बेवफा ही निकले
#बेवफामुहब्बत

मन में आशाओ के झुरमुट कभी बनते है कभी ओझल हो जाते है सच में आजाद पंछी की तरह है ये जो मस्त गगन में झूमते रहते है

मन में आशाओ के झुरमुट
कभी बनते है
कभी ओझल हो जाते है
सच में आजाद पंछी की तरह है ये 
जो मस्त गगन में झूमते रहते है

मिटा देंगे तेरा नामोनिशान,,,,,,,,,,,पकिस्तान ,,,,,,,,,,,

बाँध टूटता जा रहा है सब्र का
लहू आँखों में उतर के जो आया है
सौगंध है माँ भारती की
रक्तरंजित करदेंगे
सम्पूर्ण धराको 
मिटा देंगे तेरा नामोनिशान,,,,,,,,,,,पकिस्तान ,,,,,,,,,,,

मन के मकडजाल में उलझा ये कभी शांत तो कभी विक्षिप्त गाव की पगडंडियों पर अकेला ही चला जा रहा या छला जा रहा,,,, #नासमझीदिलकी

मन के मकडजाल में उलझा ये
कभी शांत तो कभी विक्षिप्त
गाव की पगडंडियों पर 
अकेला ही चला जा रहा 
या
छला जा रहा,,,,
#नासमझीदिलकी

कभी कुछ ख़ुशी के पल उनको भी दीजिये जिन्होंने हमेशा आपको दुःख दिए ,,,,,,,

कभी कुछ ख़ुशी के पल उनको भी दीजिये जिन्होंने हमेशा आपको दुःख दिए ,,,,,,,

लोग हमेशा वाद -विवाद में ही क्यों उलझे रहते है,,हम ऐसे रिश्तों से भी तो रिश्ते बना सकते है,,जिनसे हमारा कोई रिश्ता नही है,,या जिनका कोई नही

लोग हमेशा वाद -विवाद में ही क्यों उलझे रहते है,,हम ऐसे रिश्तों से भी तो रिश्ते बना सकते है,,जिनसे हमारा कोई रिश्ता नही है,,या जिनका कोई नही

हम हमेशा उस व्यक्ति,वस्तु ,,या और कुछ को क्यों नकार देते है जो सच बोलता है ,,पर वो हमारे विरोध में बोलता है ,,,एक निंदक की तरह

हम हमेशा उस व्यक्ति,वस्तु ,,या और कुछ को क्यों नकार देते है जो सच बोलता है ,,पर वो हमारे विरोध में बोलता है ,,,एक निंदक की तरह

कई लम्हों शांत समंदर की तरह ,,,, पर अब धैर्य तोड दिया हमने ,, है अब अशांत सा ये मन ,,,जाने कुछ कहने को आतुर ,,

कई लम्हों शांत समंदर की तरह ,,,, पर अब धैर्य तोड दिया हमने ,,
है अब अशांत सा ये मन ,,,जाने कुछ कहने को आतुर ,,

हाँ कोशिश जरूर की ,,,जुदा रहने की उनसे मगर ,, कभी वक़्त ने की बेवफाई ,,, कभी उनको मेरी वफा ना रास आई ,,,

हाँ कोशिश जरूर की ,,,जुदा रहने की उनसे मगर ,,
कभी वक़्त ने की बेवफाई ,,,
कभी उनको मेरी वफा ना रास आई ,,,

दर्द तो बस कुछ लम्हों का ही था,,, मगर,,,, गुजरने में इसे जाने क्यों सदियाँ बीत गयी ,

दर्द तो बस कुछ लम्हों का ही था,,,
मगर,,,,
गुजरने में इसे जाने क्यों सदियाँ बीत गयी ,

हम भी सोचते थे की कैद में रख लेंगे ,,,अपने दिल को,, मगर ..

हम भी सोचते थे की कैद में रख लेंगे ,,,अपने दिल को,,
मगर ..
बेफिक्र पंछी की तरह ये उड़ता ही चला गया
अब नादान है 
या
अनजान
या
बुद्धिमान
पतानही

मैं हमेशा उस परछाई के संग रहना चाहते है ,,, जिन्हें कुछ लोग आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में ,,,,अनदेखा कर देते है हमारे,,,,,,, माता-पिता

मैं हमेशा उस परछाई के संग रहना चाहते है ,,,
जिन्हें कुछ लोग आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग में ,,,,अनदेखा कर देते है 
हमारे,,,,,,, माता-पिता

विचार ,,,,,,,,,,,

क्योंना हम एक ऐसी सार्थक कोशिश करे जो हमारी भारत भूमि को जाति और धर्मो में बंटने से रोके और जिनकी पहचान मात्र भारतवासी के नाम से हो
नाकि
हिन्दू
मुश्लिम से

मुहब्बत किताब के वो पन्ने है जो हर किसी को नसीब नही होते है

मुहब्बत किताब के वो पन्ने है जो हर किसी को नसीब नही होते है
#एकजटिलप्रश्न

संवाद ,,,,

कुरीतिया कैसी भी हो उनका अंत होना चाहिए और इनपर कुछ समाज के ठेकेदारों की व्यर्थ की बहस नही होनी चाहिए जिससे किसी की जिन्दगी जुडी हो किसी की जिन्दगी का सवाल हो क्योकि कुछ समाज के ठेकेदारों को ये दर लगा रहता है की अगर कुछ गलत परम्पराए और कुरीतिया ख़त्म हो गयी तो इनको कौन पूछेगा और फिर जब हम अछि तरह जानते है की ये सिर्फ स्वार्थी है और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते है तो कुछ पब्लिसिटी के लिए कुछ भी करने या कुछ भी बोलने से गुरेज नही करते है चाहे वो दहेज़ प्रथा हो तीन तलाक हो किसी की बेटी की प्रताड़ना हो या किसी मजबूर और कमजोर की इज्जत पर हमला या बहुत से कुछ और है जिनका जवाब सबके पास है पर हिम्मत कुछ में ही है इसलिए एक देश एक भाषा और एक ही कानून होना चाहिए सभी धर्मो के लिए जय हिन्द जय भारत

LOVE YOU HMESHA

हाय इस मुस्कराती शाम में इन लडखडाते लबो को सहारा मिल जाता
 एक कप चाय की चुस्की के साथ कुछ लम्हों को हम गुनगुना लेते तेरे संग बैठ कर यु ही कुछ लम्हों को बिता लेते लेकिन सौख चर्राया था विदेश की रोटी कमाने का अब ना ही वो शाम है ना ही लडखडाते लबो को आराम है न वो चुस्किया है चाय के प्यालो की एक ही बात आज है हम कल भी लुटते थे और आज भी लुटते है हाय मेरी तन्हा मुहब्बत ये पैगाम मैंने भेजा है अपनी मुहब्बत के नाम 
LOVE YOU HMESHA

रूठना मनाना और फिर से रूठ जाना हाँ यारो इसी का नाम जिन्दगी है

रूठना मनाना और फिर से रूठ जाना हाँ यारो इसी का नाम जिन्दगी है

हाँ इक शाम बाकी है ............जो मिल जाओ मुझको तुम

हाँ इक शाम बाकी है ............जो मिल जाओ मुझको तुम
 नयनो का जाम बाकी है ,,,,,,कुछ लम्हे बिताओ मेरे संग 
साँसे है कितनी किसके जहन में ,,,,,,ये कोई क्या जाने
 हाँ इक रात मुझको ,,,अजनबी बना जाओ मुझको तुम
 हाँ इक शाम बाकी है ............जो मिल जाओ मुझको तुम
 नयनो का जाम बाकी है ,,,,,,कुछ लम्हे बिताओ मेरे संग
 तेरे बिन कुछ तो बाकी है ,,,मेरा मुझमे अधूरा है 
था दिल तडपा था तेरे बिन ,,,हुआ सपना ना जो पूरा है 
वही तन्हा मेरी राते ,,, सिसकता था हर लम्हा मेरा
 हाँ बुझते हुए इस मन का ,,,,इक दीपक बन जाओ तुम
 हाँ इक शाम बाकी है ............जो मिल जाओ मुझको तुम
 नयनो का जाम बाकी है ,,,,,,कुछ लम्हे बिताओ मेरे संग

रघुकुल रीती सदा चली आई प्राण जाये पर वचन न जाई

रघुकुल रीती सदा चली आई प्राण जाये पर वचन न जाई प्रभु राम चन्द्र जी के अनुसार हमारे आचरण ही हमारी पहचान बनाते है कुछ बोलिए बोलने से पहले ये जरूर सोचिए की उसका परिणाम क्या होगा केवल आप पर ही नही पूरे समाज पर और आपका हर एक शब्द मानव मात्र के कल्याण के लिए होना चाहिए वो किसी भी जाती  विशेष या वर्ग से समबन्धित नही होना चाहिए क्योकि मैं एक सवाल पूछना चाहता हु उसका जवाब आप सब सोच कर दीजिये की कोई नवजात बच्चा अगर किसी रास्ते पर लावारिस की तरह पड़ा है रो रहा है १-तो उससे आप उसकी जाती पूछेंगे फिर उसको फिर उसको सहारा देंगे या २-फिर ये सोचेंगे की बच्चे तो भगवान् का रूप होते है ये मानकर उसको सहारा देंगे प्रतीक्षा आपके जवाब की मित्रो बोलो सियावर राम चन्द्र की जय

Tuesday, October 25, 2016

वो समय मेरे लिए अत्यंत ही कठिन होगा जब मेरे अपने ही मेरा विरोध करेंगे

वो समय मेरे लिए अत्यंत ही कठिन होगा जब मेरे अपने ही मेरा विरोध करेंगे 

विचार कीजिये,,,,,

थोड़ी शाम ढल चुकी थी मैं भी ड्यूटी से निकल चुका था हाँ याद आया की सब्जी भी लेनी है मैं पहुच गया बाज़ार में काफी चीजे लेली थी मैंने तभी एक बुजुर्ग औरत मेरे सामने आ गयी काफी बुजुर्ग थी चेहरे पर सिकन थी उन्होंने थोडा कांपते हुए स्वर में कहा बेटा ये साग ले लो भगवान् आपका भला करेगा मुझे भी थोडा अटपटा लगा पर पता नही क्यों एक अपनापन सा लगा मैंने ले लिया और पुछा अम्मा कितने पैसे दे दूं उन्होंने कहा दस रुपये और लेकर जैसे ही चला उन्होंने कहा भगवान आपका भला करे बेटा सच में वो शब्द जैसे मेरे मन को छू गये और मैं मन ही मन सोचने लगा की हे ईश्वर आप इतना मजबूर किसी को क्यों बनाते है, पर अब मैं जब भी जाता हु तो उन अम्मा के पास सब्जी जरूर लेता हूँ और सच में एक लगाव भी हो गया है उनसे जैसे इसीलिए कभी कभी लगता है की रिश्ते बनाने के लिए हमे किसी वजह की जरूरत नही होती है ,,होना चाहिए तो एहसास जो दुसरे के दुःख को अनुभव करके उसको दूर करके अपना बना सके ,,,,इसलिए सभी से मेरा हादिक आग्रह है की आप भी कई ऐसे सच्चे रिश्ते बना सकते है जो आपको तो सुकून देंगे,,,और नये रिश्ते भी ,,,और दूसरो की जरूरत भी पूरी हो जायेगी ,,,

 


विचार कीजिये,,,,,