नदी के इस छोर पर बैठा था मैं,,
रोज जाता था उस ढलते हुए सूरज को देखने,,,,
एक दिन अचानक मेरी नजर दुसरे छोर पर गयी ,,
जहां एक धुंधली सी तस्वीर दिखी मुझे ,,,
शायद वो कोई परी थी
कुछ पल मैं उसे देखता रहा
निहारता रहा
फिर मुझे लगा की वो भी मुझे देख रही ,,,
ये सिलसिला चलने लगा
कुछ दिनों तक चलता रहा
हम एक दुसरे से आँखों से बात करते
जैसे एक दूसरे के एहसास मिश्री की तरह
हममे घुल गये हो
लेकिन हम नदी के दो किनारों से बढ़कर कुछ नही थे
धीरे धीरे बेचैनी सी होने लगी
शायद अब मिलने की इच्छा हमारे
ह्रदय में जाग्रत होने लगी थी
पर नदी बहुत ही विशाल थी
नाही कोई नाव ,,,नाही कोई सहारा ,,
पल ही पल में ह्रदय स्नेह से भर जाता
बेसब्री सताने लगती
एक दिन सोचा की कैसे भी हम मिलकर रहेंगे
चल दिए मटकी को सहारा बनाकर
एक अबोध बालक की तरह
बस खत्म हो गयी मेरी अधूरी कहानी
बस खत्म हो गयी मेरी अधूरी कहानी