Sunday, November 6, 2016

कहते है मुझको नारी,,,,,,, जो अपनों से है हारी ,,,,,,,,

मैं स्तब्ध हूँ ,,,,,,,

मैं निशब्द हूँ,,,,,

हाँ इक इंसान हूँ,,,,,

पर खुद से मैं अनजान हूँ ,,,,,,

हूँ मैं अबला,,,,

जिसको हर किसी ने छला,,,,

कहते है मुझको नारी,,,,,,,

जो अपनों से है हारी ,,,,,,,,,

कोई कहता बोझ मुझको,,,

कोई कहता शोक मुझको ,,,,,,,

मैं तो हु आँगन की चिड़िया,,,,,,,

पर नही पहचान कोई,,,,

मैं स्तब्ध हूँ ,,,,,,,

मैं निशब्द हूँ,,,,,

हाँ इक इंसान हूँ,,,,,

पर खुद से मैं अनजान हूँ ,,,,,,

किसी ने कब्जा करना चाहा मुझपर

तो कोई चाहा हथियाना

कोई जबरन मेरी इज्जत से खेलता

कोई मेरी अस्मिता को तार तार करता

नही मानी मैं बेचारी तो ,,,

एसिड अटैक कर जीवन बर्बाद किया

ये है प्रतिरोध ,,,

का कैसा प्रतिशोध ,,,

जिसमे दोषी कोई और,,

और सजा पाए निर्दोष ,,,

बस इसीलिए ,,,

मैं स्तब्ध हूँ ,,,,,,,

मैं निशब्द हूँ,,,,,

हाँ इक इंसान हूँ,,,,,

पर खुद से मैं अनजान हूँ ,,,,,,

हूँ मैं अबला,,,,

जिसको हर किसी ने छला,,,,

कहते है मुझको नारी,,,,,,,

जो अपनों से है हारी ,,,,,,,,,

 

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