Sunday, June 29, 2014

बहुत गुनाह किया मेरे हमसफ़र तुझको अपने से जुदा करके

बहुत गुनाह किया मेरे हमसफ़र तुझको अपने से जुदा  करके
लेकिन ये वक़्त की मजबूरी थी जो कभी चाहते थे जिंदगी से बढ़कर
वो कुछ लम्हों के लिए खफा हुए मुझसे
की वक़्त का हर लम्हा पूछता है मुझसे
कैसे कटे उनके बिन
हम भी कुछ सोचते  है
कुछ कहते कहते मनसे
भीग जाते है अपने आनुओ से
ये बारिस है अति है जाती है
लेकिन एक मीठा सा दर्द जो समेटे हुए है अपने अंदर
उसका भी एहसास करा जाती है
हमे भी इन्तजार रहता है
की कब वो पल आएगा
और वो जो खफा है
हमसे जो जुड़ा है
खो गए है जो मुझसे मेरे पल
वो मिल जायेंगे
वो मिल जाएंगे

No comments: