Sunday, June 15, 2014

कितनी दूर चले ये कदम कभी चलते है कभी रुक जाते है

कितनी दूर चले ये कदम कभी चलते है कभी रुक जाते है
बाहो के दरमियाँ आके कुछ साये भी छिन जाते है
दिल ये ख्वाइसे तो तमाम करता है लेकिन
सपने मंन में भी बहुत है
लेकिन मेरा दिल है दिल कोई दरिया तो नहीं
इसीलिए लोग डूब जाने के दर से भाग जाते है
कैसे समझाए उस बेवफा मुहब्बत को
जिसके बिन गुजर दी हमने सारी जिंदगी
ताउम्र कैद में रहे उनकी जुल्फों में
फिर भी ये दिल तोड़ दिया तो हम क्या करे 

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