दबी इक बात दिल में है,,,
की मन में कुछ कृत्रिम सा है,,,
कई इक लब्ज है होठो पर,,,
लेकिन अनकहे है वो,,,,
फिर भी आँखे जाने क्यों,,,
आशा के दीपक जलाकर बैठे रहते है,,,
है जो बात सीने में,,
दबी जैसे हो चिंगारी,,,
क्यू जो ख्वाब देखे थे,,,
वो अब तक जो,,,अधूरे हैं
दबी इक बात दिल में है,,,
की मन में कुछ कृत्रिम सा है,,,
था कुछ दूर ही चला वो,,,
कही पनघट यही पर था,,,
वही गलियां,,, वही नदियां,,,
फिर भी कुछ अवशेष सा था,,,
थे पनघट पर अब सब प्यासे,,,
नही थी अब घटा काली,,,
है बंजर रेत सा अब मन,,,
है अब सूखे से पत्ते,,,
नही है अब हरियाली,,
फिर भी जाने क्यूँ,,, मेरा मन
वही सपने सँजोता है,,,
तड़पता रहता है हर पल,,
कि,,, कोई सहमा रहता है,,,
दबी इक बात दिल में है,,,
की मन में कुछ कृत्रिम सा है,,,
दबी इक बात दिल में है,,,
की मन में कुछ कृत्रिम सा है,,,
कई इक लब्ज है होठो पर,,,
लेकिन अनकहे है वो,,,,
फिर भी आँखे जाने क्यों,,,
आशा के दीपक जलाकर बैठे रहते है,,,
Nirmalearthcarefoundation
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