तुम पर सर्वस्व लुटाया मैंने,,,
यादो में हर पल बुलाया मैंने,,,
मनुहार किया,,,मन से मैंने,,
तुम्हे,,,प्यार किया दिल से मैंने,,,
फिर भी जाने क्यों निर्मल मन,,,
तन्हा सा है तुम बिन जीवन,,,
देखा है तुझे बस सपनो में,,,
लगते हो कुछ तुम अपने से,,,
हां चांदनी सी इन रातो में,,,
रिमझिम रिमझिम बरसातों में,,,
ख्वाबो में तुझे सजाया मैंने,,
फिर भी जाने क्यों निर्मल मन,,,
तन्हा सा है तुम बिन जीवन,,,
हो कोई परी,,, या हो रानी,,
सपनो में सुनी हुई कोई कहानी,,,
कभी इठलाती,,कभी शर्माती,,
कभी चुपके,,चुपके आकरके ,,,
मेरे सूने मन से कुछ कह जाती,,
क्या है ये,,,क्यों है ये
सच है ,,,या,,
सिर्फ ,,,आभास मात्र,,,
जो भी है ,,,अपना लगता है
इक प्यारा सपना लगता है
फिर भी जाने क्यों निर्मल मन,,,
तन्हा सा है तुम बिन जीवन,,,
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