वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,
जैसे नन्ही हंथेली का सहारा छूट जाता है,,
नदी के एक छोर पर खड़े है ,,हम निःशब्द से,,
वही उंगली तेरी माँ,,, हाँथो को छोड़ जाती है,,
वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,
बहुत असहाय है ये मन,,,
क्यों छोड़ आये हम बचपन,,,
वही लोरी की आवाजें,,,अब झकझोर जाती है
करवटे बदलते रहते हैं,,, पर अब तू ना आती है
क्या है तेरा,,,मेरा यहाँ,, ये प्रश्न विश्मित कर जाते है
वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,
ये हम आ गए हैं कहाँ,, चारो ओर शोर है
हैं कंक्रीट के जंगल,,,नही हरियाली कही पे
जाने कैसी भागमभाग,,
इंसान बन गया है मशीन,,
ना ही अपनापन ,,,नाही रिश्ते,,
गुंडों को भाई बताते हैं
गाँव की वो पगडंडी,,,जिनपे हम भाग जाते थे
वही गलियां,, वही नदिया,,वही झरने बुलाते है
वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,
Nirmal Earthcarefoundation Ngo
8699202058
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