मन कभी कुछ कहता है
कभी शान्त रहता है
अँधेरे में कहीं ,,,जाने
मन के पन्नों को पढ़ता है
हाँ,, उतार चढ़ाव तो है जीवन,,
पर ,,,फिर भी,,हर क्षण मुझसे लड़ता है
कहता है अनजान हो तुम
ठहर जाओ,,
कुछ पल यूँ ही,,
लेकिन ये क्या जाने ,,,
अँधेरा कहाँ ठहरता है,,
उस शांत बहते जल को देखो
मधुरिम निकलता उसका स्वर देखो
महसूस करो,,,
शायद कुछ ज़िन्दगी के पन्ने,,,अपने आप पलट जाए
आकाश में भी असंख्य चित्र बनते है,,
कभी धूमिल हो जाते है
कहाँ ढूँढूँ उसमे तुम्हे,,
वही से मुझे इक नज़र देखो
मेरा हृदय सुन लेगा तुम्हे,,
मद्धम सी वही ,,,
धुंधली ही सही,,
इक आवाज तो दो,,
है अधूरापन तुम बिन,,
पल्लवित ये मन,,और नयन,,
मुरझा से गये है
इनकी तरफ एक बार सिहर कर देखो
,,,,
Nirmal Earthcarefoundation Ngo
8699208385
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