Monday, October 30, 2017

इंसानियत का धर्म अपनाने मात्र से,,दूसरों का दर्द भी अपना लगने लगता है Nirmal Earthcarefoundation Ngo

इंसानियत का धर्म अपनाने मात्र से,,दूसरों का दर्द भी अपना लगने लगता है
Nirmal Earthcarefoundation Ngo

Saturday, October 28, 2017

इसीलिए,,श्री कृष्ण ने कहा है कि,, तू सत्य है,, इसलिए तेरा नाम मृत्यु है

शाम ढलती रही हैं,,
सूरज की किरणें निकल रही
ये निश्चित है
और,,
जीवन यात्रा चल रही
पर ज़िन्दगी जाने क्यों छल रही,,
बस इंतज़ार है तो सिर्फ तेरा
क्योंकि,, श्री कृष्ण ने कहा है कि,,
तू सत्य है,,
इसलिए तेरा नाम मृत्यु है
हम सभी कुछ अबोध हैं
कुछ ज्ञानी ,,,फिर भी,,
चारों तरफ अनियंत्रित गति से
फैलता जा रहा,,घना अंधकार,,
मन कुटिल है,,,
मृग तृष्णा में उलझा है
क्योंकि ये काल्पनिक असत्य है

इसीलिए,,श्री कृष्ण ने कहा है कि,,
तू सत्य है,,
इसलिए तेरा नाम मृत्यु है

पहिया है समय का,,
निरन्तर चलता रहेगा,,
पर हम सभी के भविष्य का निर्माण,,
तो हमारे द्वारा किया कर्म ही करेगा,,,
जो बोया ,,,वही काटेंगे,,
वही अपनों में हम बाटेंगे,,,
वही धूप,,,छाव ,,
वही सुख,,,दुख बनकर,,
हमसे हमारा हिसाब लेगा
फिर क्या लेना देना,,
मन का मनका तो है एक खिलोना,,
इससे खेलना मात्र मन का भरम है

,,,,,
शाम ढलती रही हैं,,
सूरज की किरणें निकल रही
ये निश्चित है
और,,
जीवन यात्रा चल रही
पर ज़िन्दगी जाने क्यों छल रही,,
बस इंतज़ार है तो सिर्फ तेरा
क्योंकि,, श्री कृष्ण ने कहा है कि,,
तू सत्य है,,
इसलिए तेरा नाम मृत्यु है

Nirmal Earthcarefoundation Ngo
EARTHCARE FOUNDATION

Sunday, October 22, 2017

वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,, जैसे नन्ही हंथेली का सहारा छूट जाता है,, नदी के एक छोर पर खड़े है ,,हम निःशब्द से,, वही उंगली तेरी माँ,,, हाँथो को छोड़ जाती है,, वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,, बहुत असहाय है ये मन,,, क्यों छोड़ आये हम बचपन,,, वही लोरी की आवाजें,,,अब झकझोर जाती है करवटे बदलते रहते हैं,,, पर अब तू ना आती है क्या है तेरा,,,मेरा यहाँ,, ये प्रश्न विश्मित कर जाते है वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,, ये हम आ गए हैं कहाँ,, चारो ओर शोर है हैं कंक्रीट के जंगल,,,नही हरियाली कही पे जाने कैसी भागमभाग,, इंसान बन गया है मशीन,, ना ही अपनापन ,,,नाही रिश्ते,, गुंडों को भाई बताते हैं गाँव की वो पगडंडी,,,जिनपे हम भाग जाते थे वही गलियां,, वही नदिया,,वही झरने बुलाते है वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,, Nirmal Earthcarefoundation Ngo 8699202058

वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,
जैसे नन्ही हंथेली का सहारा छूट जाता है,,
नदी के एक छोर पर खड़े है ,,हम निःशब्द से,,
वही उंगली तेरी माँ,,, हाँथो को छोड़ जाती है,,
वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,

बहुत असहाय है ये मन,,,
क्यों छोड़ आये हम बचपन,,,
वही लोरी की आवाजें,,,अब झकझोर जाती है
करवटे बदलते रहते हैं,,, पर अब तू ना आती है
क्या है तेरा,,,मेरा यहाँ,, ये प्रश्न विश्मित कर जाते है
वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,

ये हम आ गए हैं कहाँ,, चारो ओर शोर है
हैं कंक्रीट के जंगल,,,नही हरियाली कही पे
जाने कैसी भागमभाग,,
इंसान बन गया है मशीन,,
ना ही अपनापन ,,,नाही रिश्ते,,
गुंडों को भाई बताते हैं
गाँव की वो पगडंडी,,,जिनपे हम भाग जाते थे
वही गलियां,, वही नदिया,,वही झरने बुलाते है

वही सपने,,,वही,,अपने,,ख़्वाबों में रोज आते है
आंखे खुलती हैं जैसे,,सपने धूमिल हो जाते हैं,,,

Nirmal Earthcarefoundation Ngo

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Tuesday, October 17, 2017

मन कभी कुछ कहता है कभी शान्त रहता है अँधेरे में कहीं ,,,जाने मन के पन्नों को पढ़ता है हाँ,, उतार चढ़ाव तो है जीवन,, पर ,,,फिर भी,,हर क्षण मुझसे लड़ता है कहता है अनजान हो तुम ठहर जाओ,, कुछ पल यूँ ही,, लेकिन ये क्या जाने ,,, अँधेरा कहाँ ठहरता है,, उस शांत बहते जल को देखो मधुरिम निकलता उसका स्वर देखो महसूस करो,,, शायद कुछ ज़िन्दगी के पन्ने,,,अपने आप पलट जाए आकाश में भी असंख्य चित्र बनते है,, कभी धूमिल हो जाते है कहाँ ढूँढूँ उसमे तुम्हे,, वही से मुझे इक नज़र देखो मेरा हृदय सुन लेगा तुम्हे,, मद्धम सी वही ,,, धुंधली ही सही,, इक आवाज तो दो,, है अधूरापन तुम बिन,, पल्लवित ये मन,,और नयन,, मुरझा से गये है इनकी तरफ एक बार सिहर कर देखो ,,,, Nirmal Earthcarefoundation Ngo 8699208385

मन कभी कुछ कहता है
कभी शान्त रहता है
अँधेरे में कहीं ,,,जाने
मन के पन्नों को पढ़ता है
हाँ,, उतार चढ़ाव तो है जीवन,,
पर ,,,फिर भी,,हर क्षण मुझसे लड़ता है
कहता है अनजान हो तुम
ठहर जाओ,,
कुछ पल यूँ ही,,
लेकिन ये क्या जाने ,,,
अँधेरा कहाँ ठहरता है,,
उस शांत बहते जल को देखो
मधुरिम निकलता उसका स्वर देखो
महसूस करो,,,
शायद कुछ ज़िन्दगी के पन्ने,,,अपने आप पलट जाए
आकाश में भी असंख्य चित्र बनते है,,
कभी धूमिल हो जाते है
कहाँ ढूँढूँ उसमे तुम्हे,,
वही से मुझे इक नज़र देखो
मेरा हृदय सुन लेगा तुम्हे,,
मद्धम सी वही ,,,
धुंधली ही सही,,
इक आवाज तो दो,,
है अधूरापन तुम बिन,,
पल्लवित ये मन,,और नयन,,
मुरझा से गये है
इनकी तरफ एक बार सिहर कर देखो
,,,,

Nirmal Earthcarefoundation Ngo
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