फिर वही रात याद आ गयी
Thursday, August 7, 2014
फिर वही रात याद आ गयी
गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी
मन में थी हया उसे मुस्किल है बया कर पाना
तुमने दी थी जो सौगात वो याद आ गयी
फिर वही रात याद आ गयी
गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी
अब ये दिन भी है क्या
कल थे हम कहा
और आज है कहा
बदला हर मौसम बदला हर सावन
नही बदला तो ये दिल मेरा
वो मुलाकात याद आ गयी
फिर वही रात याद आ गयी
गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी
लाज से हौले हौले आँखों के झुरमुट को उठाते हुए
की लाख कोशिश उन्हें देखने की फिर भी हिम्मत न
हुई
था हर पल का इन्तजार जैसे सदियों सा
वो मिलन की रात याद आ गयी
फिर वही रात याद आ गयी
गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी
जाने कैसी कसमसाहट थी या कसमकस थी मन को मेरे
घूंघट उठा के वो छु ले दिल को मेरे
दीदार् हो
जाये उस लम्हे का मुझे
तुम मुझे मै तुम्हे मै तुम्हे तुम मुझे
देखते ही रहे देखते ही रहे
ये धरा ये गगन ये नदी ये पवन
ठहर जाये जो कुछ पल के लिए
हर लम्हा जो गुजरा था तुम
बिन जिन्दगी
आज गिन गिन के उसका हिसाब
हो जाये
फिर वही रात याद आ गयी
गुजरा जमाना फिर भी हर
बात याद आ गयी
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