Wednesday, August 6, 2014

आज उस ममता की मूरत से क्यों हमको है प्यार नही

वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही

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