Thursday, August 7, 2014

चलो ये भी कह दिया तो तुमने ठीक किया

चलो ये भी कह दिया तो तुमने ठीक किया
तुम्हे भरोसा नही है हमपे ये जता ही दिया
उम्र भर थाम कर चलते रहे हम जो डोर 
पल ही में कच्चे धागे की तरहा तोड़ दिया

हर लम्हे को याद करके लिखता हु

हर लम्हे को याद करके लिखता हु 
यादो से बात करके लिखता हु 
कभी बेचैन हो जाता है मेरा दिल तुम बिन 
उसको संभाल के ये लिखता हु 
इसमें स्याही नही है कलम की सनम 
अपने लहू के आफताब से मै लिखता हु 
दर्द होता नही लहू के निकलने में 
उससे ज्यादा दर्द होता है तुमसे बिछड़ने में
वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही

फिर वही रात याद आ गयी

फिर वही रात याद आ गयी

गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी

मन में थी हया उसे मुस्किल है बया कर पाना

तुमने दी थी जो सौगात वो याद आ गयी

फिर वही रात याद आ गयी

 

गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी

अब ये दिन भी है क्या

कल थे हम कहा  और आज है कहा

बदला हर मौसम बदला हर सावन

नही बदला तो ये दिल मेरा

वो मुलाकात याद आ गयी

फिर वही रात याद आ गयी

 

गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी

लाज से हौले हौले आँखों के झुरमुट को उठाते हुए

की लाख कोशिश उन्हें देखने की फिर भी हिम्मत न हुई

था हर पल का इन्तजार जैसे सदियों सा

वो मिलन की रात याद आ गयी

फिर वही रात याद आ गयी

गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी

 

जाने कैसी कसमसाहट थी या कसमकस थी मन को मेरे

घूंघट उठा के वो छु ले दिल को मेरे

दीदार् हो  जाये उस लम्हे का मुझे

तुम मुझे मै तुम्हे मै तुम्हे तुम मुझे

देखते ही रहे देखते ही रहे

ये धरा ये गगन ये नदी ये पवन

ठहर जाये जो कुछ पल के लिए

हर लम्हा जो गुजरा था तुम बिन जिन्दगी

आज गिन गिन के उसका हिसाब हो जाये

 

फिर वही रात याद आ गयी

गुजरा जमाना फिर भी हर बात याद आ गयी

 

 

 


Wednesday, August 6, 2014

आज उस ममता की मूरत से क्यों हमको है प्यार नही

वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही

आज उस ममता की मूरत से क्यों हमको है प्यार नही

वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही

आज उस ममता की मूरत से क्यों हमको है प्यार नही

वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही

आज उस ममता की मूरत से क्यों हमको है प्यार नही

वो तो है देवी से बढ़कर किस मंदिर की सोभा है नही
हम पत्थर की पूजा करते क्यों हमको उसकी परवाह नही
अपने लहू से हमको सवार है
अपना पेट काट कर पाला है
आज उसी को हम ठोकर मारते
क्यों हमपर है धिक्कार नही
ममता से भरा उसका आँचल
सारे सपने मेरी खातिर
गर आह निकले गलती से ही
आंसुओ से मन भीग जाए
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही
आज उस ममता की मूरत से
क्यों हमको है प्यार नही