प्राकृतिक प्रेम का जन्म आत्मिक होता है जो हमारे रिश्तों में जन्म जन्मांतर तक रहता है इसका वास हृदयतल से आरंभ होकर मन की विभिन्न इंद्रियों में विचरता रहता है जो एक ऐसे आनंद की अनुभूति करता है जो हमारे कृत्रिम सुखों से परे होता है वही आकर्षण पाशविक प्रकृति का होता है जो हमारी ईच्छा के अनुरूप प्रकट होता है ये क्षणिक होता है जिसका वास भी तमस से भरा है और ये हमे निरन्तर अंधकार की ओर घसीटता हुआ एक अंधकूप में ले जाता है जहां हमारे विवेक का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। विचार आपका,,,चुनाव आपका,,,,
आपको परमात्मा चाहिए
अथवा
परम,,आत्मा
Nirmal earthcarefoundation
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