Sunday, May 13, 2018

माँ जैसी अनुपम रचना असंभव है,,,ये हर उस बच्चे के लिए अमूल्य उपहार है जो हमारे हर सुख दुख,,धूप,,छाव में हमारे साथ,,हमारी परछाई की तरह साथ रहती है,, माँ की ममता ,,अद्भुत,,अतुलनीय,,अकल्पनीय है इस सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में,,इसलिए हर माँ को कोटि कोटि प्रणाम,, जो अपने जीवन के प्रत्येक पल में सोने की तरह तप कर अपना सर्वस्व जीवन अपने बच्चों के नाम कर देती है,,उसके हर सपने ,,,हर ख्वाब,,दिन हो ,,,चाहे राते,,सारी इच्छाएं सिर्फ अपने बच्चों की खिलखिलाहट में सिमटी रहती है,,,और हम ज्यादातर हर कदम पर बेईमान होते है ,,,पर माँ तो आखिर माँ होती है,इसलिए सिर्फ एक दिन नही प्रत्येक दिन ,,प्रत्येक क्षण माँ की खुशी के लिए हम सभी को हरसंभव प्रयास करना चाहिए बस इसी छोटी सी ख्वाइश के साथ mothers day की कोटि कोटि शुभकामनाएं Nirmal Earthcarefoundation Vriksharopan Ekabhiyaan EARTHCARE FOUNDATION NGO www.earthcarengo.org

माँ जैसी अनुपम रचना असंभव है,,,ये हर उस बच्चे के लिए अमूल्य उपहार है जो हमारे हर सुख दुख,,धूप,,छाव में हमारे साथ,,हमारी परछाई की तरह साथ रहती है,,
माँ की ममता ,,अद्भुत,,अतुलनीय,,अकल्पनीय है इस सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में,,इसलिए हर माँ को कोटि कोटि प्रणाम,, जो अपने जीवन के प्रत्येक पल में सोने की तरह तप कर अपना सर्वस्व जीवन अपने बच्चों के नाम कर देती है,,उसके हर सपने ,,,हर ख्वाब,,दिन हो ,,,चाहे राते,,सारी इच्छाएं सिर्फ अपने बच्चों की खिलखिलाहट में सिमटी रहती है,,,और हम ज्यादातर हर कदम पर बेईमान होते है ,,,पर माँ तो आखिर माँ होती है,इसलिए सिर्फ एक दिन नही प्रत्येक दिन ,,प्रत्येक क्षण माँ की खुशी के लिए हम सभी को हरसंभव प्रयास करना चाहिए

बस इसी छोटी सी ख्वाइश के साथ mothers day की कोटि कोटि शुभकामनाएं

Nirmal Earthcarefoundation Vriksharopan Ekabhiyaan
EARTHCARE FOUNDATION NGO
www.earthcarengo.org

Thursday, May 3, 2018

प्राकृतिक प्रेम का जन्म आत्मिक होता है जो हमारे रिश्तों में जन्म जन्मांतर तक रहता है इसका वास हृदयतल से आरंभ होकर मन की विभिन्न इंद्रियों में विचरता रहता है जो एक ऐसे आनंद की अनुभूति करता है जो हमारे कृत्रिम सुखों से परे होता है वही आकर्षण पाशविक प्रकृति का होता है जो हमारी ईच्छा के अनुरूप प्रकट होता है ये क्षणिक होता है जिसका वास भी तमस से भरा है और ये हमे निरन्तर अंधकार की ओर घसीटता हुआ एक अंधकूप में ले जाता है जहां हमारे विवेक का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। विचार आपका,,,चुनाव आपका,,,,

प्राकृतिक प्रेम का जन्म आत्मिक होता है जो हमारे रिश्तों में जन्म जन्मांतर तक रहता है इसका वास हृदयतल से आरंभ होकर मन की विभिन्न इंद्रियों में विचरता रहता है जो एक ऐसे आनंद की अनुभूति करता है जो हमारे कृत्रिम सुखों से परे होता है वही आकर्षण पाशविक प्रकृति का होता है जो हमारी ईच्छा के अनुरूप प्रकट होता है ये क्षणिक होता है जिसका वास भी तमस से भरा है और ये हमे निरन्तर अंधकार की ओर घसीटता हुआ एक अंधकूप में ले जाता है जहां हमारे विवेक का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है। विचार आपका,,,चुनाव आपका,,,,

आपको परमात्मा चाहिए
अथवा
परम,,आत्मा

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