बस शाम ढल चुकी है,,,
और मैं निहार रहा हूँ,,,उस आसमान को,,
जहां कुछ किरणे झिलमिला रही है,,
उसी झील में जहां असंख्य किरणे खेल रही थी,,,
बस कुछ देर पहले,,,
शायद आज मैं अकेला,,
और मेरी चाय भी,,,
जो तुम बिन फीकी सी लग रही है,,
हाँ कुछ तो कहते है ,,लब,,
लेकिन तभी एहसास होता है,,,
कि तुम नही हो मेरे पास,,,मेरे साथ,,,
बस है तो संग अँधेरा घना,,,,
और,,,
स्तब्ध मन से सहमी सी आवाज आती है
जाने तुम कहाँ हो
जाने तुम कहाँ हो
Nirmal Earthcarefoundation Ngo
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