तुम्हारे महलों की चकाचौंध से अच्छी तो हमारी झोंपड़ी की सुकून की दो जून की रोटी है,,,जिसमे सिर्फ प्रेम और अपनेपन का तड़का है,,,नाकि ईर्ष्या,,जलन,,और कलह,,,साहेब
फिर भी जाने क्यों लोग तुम्हे अमीर और मुझे,,गरीब कहते है
Nirmal earthcarefoundation ngo
तुम्हारे महलों की चकाचौंध से अच्छी तो हमारी झोंपड़ी की सुकून की दो जून की रोटी है,,,जिसमे सिर्फ प्रेम और अपनेपन का तड़का है,,,नाकि ईर्ष्या,,जलन,,और कलह,,,साहेब
फिर भी जाने क्यों लोग तुम्हे अमीर और मुझे,,गरीब कहते है
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जब रिश्तों में राजनीति आ जाती है,,उस परिस्थिति में परिवार का बिखरना निश्चित है
Nirmal Earthcarefoundation Ngo
शहर में एक वैधजी हुआ करते थे, जिनका मकान एक पुरानी सी इमारत में था। वैधजी रोज सुबह दुकान जाने से पहले पत्नी को कहते कि जो कुछ आज के दिन के लिए तुम्हें आवश्यकता है एक चिठ्ठी में लिख कर दे। पत्नी लिखकर दे देती । आप दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होती। उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही हुक्म के अनुसार में तेरी बंदगी छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। ज्योंही तू मेरी आज की जरूरी पैसो की व्यवस्था कर देगा। उसी समय यहां से उठ जाऊँगा .
और फिर यही होता। कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे वैधजी रोगियों की समाप्ति कर वापस अपने घर चले जाते।
एक दिन वैधजी ने दुकान खोली। रकम का हिसाब के लिए चिठ्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने तंत्रिकाओं पर काबू पा लिया। आटे दाल चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान। कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा *'' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''*
एक दो मरीज आए थे। उन्हें वैधजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी। वैधजी ने कार या साहब को कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैधजी ने कहा कि अगर आप अपने लिए दवा लेनी है तो उधर स्टूल पर आ जाये ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करे। वह साहब कहने लगे वैधजी मुझे लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं। लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आप की दुकान पे आया हूँ
आप को पिछली मुलाकात सुनाता हूँ फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहां आया था तो में खुद नहीं आया था ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि दिल्ली से सुंदरनगर अपनी कार में अपने पैतृक घर जा रहा था। यही दुकान के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर ठीक कराने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा हूँ। आप मेरे पास आए और दुकान की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें। मैं शुक्रिया अदा किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया।
ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी सी बच्ची भी यहाँ अपकी मेज के पास खड़ी थी और बार बार कह रही थी '' चलें नां, मुझे भूख लगी है। आप उसे कह रहे थे बेटी थोड़ा सब्र करो चलते हैं।
मैं यह सोच कर कि इतनी देर आप के पास बैठा हूँ। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी साहब में 5,6 साल से इंग्लैंड में हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चों के सुख से वंचित हूँ। यहां भी इलाज किया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत में निराशा के सिवा और कुछ नहीं देखा। आपने कहा मेरे भाई! माफ करो और अपने भगवान से निराश न हो । याद रखें उसके खजाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल व इज्जत और ग़मी खुशी, जीवन मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। किसी वैधजी या डॉक्टर के हाथ नहीं होती और न ही किसी दवा में होती है। अगर होनी है तो भगवान के हुक्म से होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे और साथ पुड़ीया भी बना रहे थे। सभी दवा आपने 2 भागों में विभाजित कर लिफाफा में डाली फिर मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि मेरा नाम कृष्णलाल है। आप ने एक लिफाफा पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखा। फिर दोनों लिफाफे एक बड़े लिफाफा रख दवा का उपयोग करने का तरीका बताया। मैंने बेदिली से दवाई ले ली क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पूछा कितने पैसे? आपने कहा बस ठीक है। मैं जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी रकम वैधजी ने भगवान से मांगी थी वह गुरु ने दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में शर्मिंदा हुआ कि मेरे कितने घटिया विचार था और यह सरल वैधजी कितने महान व्यक्ति है।
मैं जब घर जा कर बीवी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। वैधजी आज मेरे घर में तीन तीन फूल खेल रहे हैं।
हम जीवन साथी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। जब भी इंडिया में छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन दुकान बंद पाया। कल दोपहर भी आया था दुकानबंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आप वैधजी से मिलना है तो सुबह 9 बजे अवश्य पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।
वैधजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड सेटल हो चुका है। केवल हमारे एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ इंडिया में रहती है। हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैंने अपने ज़िम्में लिया था। 10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं दिल्ली अपने रिश्तेदारों के पास भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे दिल्ली जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की गोलियाँ डिस्प्रिन आदि खाती और बाजारों में फिरती रही। बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिरी। वहां से उसे अस्पताल ले गए। वहां जाकर पता चला कि इसे 106 डिग्री बुखार है और यह गर्दन तोड़ बुखार है। वह कोमा की हालत ही में इस दुनिया से चली गयी ।
इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी पत्नी को आपकी बेटी का ख्याल आया। हमने और हमारे पूरे परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे। शादी जल्दी हे तो व्यवस्था खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप को ना नहीं करनी। अपना घर दिखा दें ताकि माल ट्रक वहां पहुंचाया जा सके।
वैधजी हैरान-परेशान हुए बोले '' कृष्णलाल जी आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैं तो आज सुबह जब पत्नी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाला के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े '' बेटी के दहेज का सामान '' तो तुम्हें पता है मैंने क्या लिखा। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें। वहां उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि '' बेटी के दहेज '' के सामने लिखा हुआ था *'' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''*
कृष्ण जी, यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पत्नी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और भगवान ने उसका उसी दिन व्यवस्था न कर दिया हो।
वाह भगवान वाह। तू महान है तू मेहरबान है। आपकी भांजी की मौत का दुःख है लेकिन ईश्वर के रंगों से हैरान हूँ कि वे कैसे अपने रंग दिखाता है।
वैधजी ने कहा जब से होश संभाला एक ही पाठ पढ़ा कि सुबह परमात्मा का आभार करो शाम को अच्छे दिन गुजरने का आभार करो , खाने समय उसका आभार करो ,
*आभार मेरे मालिक तेरा बहुत बहुत आभार ।*
चाहे एकल तलाक हो या तीन तलाक ये ईश्वर की नजरों में सिर्फ गुनाह,जिनमे कई बेगुनाहों की जिंदगी तबाह हो जाती है
बस शाम ढल चुकी है,,,
और मैं निहार रहा हूँ,,,उस आसमान को,,
जहां कुछ किरणे झिलमिला रही है,,
उसी झील में जहां असंख्य किरणे खेल रही थी,,,
बस कुछ देर पहले,,,
शायद आज मैं अकेला,,
और मेरी चाय भी,,,
जो तुम बिन फीकी सी लग रही है,,
हाँ कुछ तो कहते है ,,लब,,
लेकिन तभी एहसास होता है,,,
कि तुम नही हो मेरे पास,,,मेरे साथ,,,
बस है तो संग अँधेरा घना,,,,
और,,,
स्तब्ध मन से सहमी सी आवाज आती है
जाने तुम कहाँ हो
जाने तुम कहाँ हो
Nirmal Earthcarefoundation Ngo
सामाजिक संघर्ष में लिप्त लोगों को सही मार्ग पर लाने के लिए कानून बनाया जाता है और उसके माध्यम से उन्हें दंडित किया जाता है। जबकि 'धर्म में युद्घ' की स्थिति में लिप्त लोगों को सही मार्ग पर लाने के लिए नीति और विधि का सहारा लिया जाता है। इस नीति में दण्ड की एक अवस्था है। नीति और विधि कानून से कहीं अधिक पवित्र और उत्कृष्ट अवस्था है, जो कि मनुष्य का प्राकृतिक नियमों के अनुसार धीरे-धीरे सुधार करती है, और यदि वह अपनी प्रवृत्ति में सुधार नही लाता है तो धीरे-धीरे उसे वैसे ही समाज की मुख्यधारा से दूर कर देती है जैसे पकने के पश्चात किसी फल को कोई बेल स्वयं ही छोड़ देती है। वास्तव में यह अवस्था बहुत ही उत्तम है। इसे भारत ने विकसित किया और इस व्यवस्था को सफल बनाने के लिए समाज के हर व्यक्ति को अधिकार दिये। यही कारण है कि भारत में अनैतिक और अनुचित कार्यों को करने वाले लोगों को कई बार सामूहिक सामाजिक बहिष्कार तक का दण्ड भी भुगतना पड़ जाता था। इस दण्ड का अभिप्राय था कि समाज की व्यवस्था में और नैतिक व्यवस्था में अवरोध बने किसी भी व्यक्ति को समाज में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है, और इसीलिए उसकी अनैतिकता का सारा समाज ही सामूहिक रूप से बहिष्कार करता है। इस प्रकार यह बहिष्कार किसी व्यक्ति का बहिष्कार न होकर अनैतिकता का बहिष्कार होता था।
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अब आते हैं-'युद्घ में धर्म' की भारत की दूसरी अवधारणा पर। 'युद्घ में धर्म' का अभिप्राय है कि युद्घ के समय भी नैतिकता और न्यायसंगत व्यवहार का निष्पादन करना। संसार के अन्य मजहबों व देशों ने युद्घ में सब कुछ उचित माना है, परंतु भारत युद्घ के भी नियम (धर्म) बनाता है और उन्हें युद्घ के समय पालन भी करता है। भारत को 'विश्वगुरू' बनाने में इस परम्परा ने भी सहयोग दिया। 'युद्घ में धर्म' का अभिप्राय है कि युद्घ में भी हमारी नैतिकता हमारे क्रोध को संयमित और संतुलित रखेगी और हमें क्रूर, अत्याचारी या निर्मम नहीं होने देगी। हम मन्युमान रहेंगे। मन्यु क्रोध की पवित्र और निर्मल न्यायपूर्ण अवस्था है, जिसमें व्यक्ति किसी दोषी को या अपराधी को उसके अपराध के अनुपात में नाप तोलकर दण्ड देता है। यही ईश्वरीय व्यवस्था है। जैसे ईश्वर हमें हमारे कर्मों का उचित से उचित दण्ड देता है-वैसे ही युद्घ में जाने वाले योद्घाओं को उचित से उचित दण्ड ही देना चाहिए। यह धर्म है। भारत ने सदा धर्म युद्घों की ही घोषणा की है। उसने किसी संप्रदाय को मिटाने के लिए या किसी देश को लूटने के लिए युद्घों की घोषणा नहीं की और ना ही अपने ऐसे लक्ष्य में सफल होने के लिए किसी प्रकार के 'जिहाद' की ही घोषणा की है।
'युद्घ में धर्म' या युद्घ में नियम और नैतिकता को स्थापित करना बहुत बड़ी साधना की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करती है-यह अवधारणा। इसे सिरे चढ़ाने के लिए भारत में हर युद्घ से पूर्व दोनों पक्ष मिल-बैठकर युद्घ के नियम निश्चित करते थे। उसके पश्चात युद्घ क्षेत्र में उन नियमों का पालन करते थे। महाभारत के युद्घ में दोनों पक्षों ने ऐसे दर्जनों नियम बनाये थे -जिनसे युद्घ में धर्म की पुष्टि होती है। इन नियमों में निहत्थे पर हमला न करना, अपने समान बल और अपने समान अस्त्र-शस्त्र वाले से ही युद्घ करना, युद्घ में पीठ दिखाने वालों पर हमला न करना, युद्घ में आत्मसमर्पण करने वालों को प्राणदान देना, युद्घ देखने के लिए आने लोगों से कुछ न कहना, युद्घ में भाग न लेने वालों को कुछ न कहना, युद्घ में महिलाओं, बच्चों व वृद्घों का सम्मान करना, युद्घोपरांत जनसंहार न करना, किन्नरों को प्राणदान देना इत्यादि सम्मिलित थे। भारत ने युद्घ में ऐसे नियमों का सदा पालन किया है। महाभारत के युद्घ में जब इन नियमों की अवहेलना अभिमन्यु जैसे सुकुमार योद्घा को मारकर की गयी तो उसे अत्यंत अशुभ और निंदनीय माना गया, और दुर्योधन की इन्हीं मूर्खताओं ने उसे पराजय का कड़वा फल चखने के लिए विवश किया।
'युद्घ में धर्म' की इस पवित्रावस्था को अपनाने वाली संस्कृति ही विश्व की सर्वोत्कृष्ट संस्कृति कही जा सकती है और उसको मानने वाला देश ही 'विश्वगुरू' हो सकता है। विशेषत: तब जबकि विश्व के अन्य देशों के लोगों ने या संस्कृतियों ने या देशों ने युद्घ में कोई नियम बनाना तक भी उचित नहीं माना। यही कारण रहा कि उन देशों ने युद्घ के समय हर प्रकार के अनैतिक कार्य का सहारा लिया और शत्रु को परास्त करने के पश्चात जनसंहार तक को भी उचित माना। इतना ही नहीं महिलाओं का शीलभंग करना, उनके सामने उनके दुधमुंहे बच्चों का वध करना व वृद्घों को मारकाट देने की वीभत्स घटनाएं भी कीं। भारत का अपना इतिहास तुर्कों, मुगलों और अंग्रेजों के ऐसे अनेकों जनसंहारों से भरा पड़ा है-जिन्हें देखकर लज्जा को भी लज्जा आ जाएगी। ऐसी हिंसक विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोग या देश कभी भी 'विश्वगुरू' नहीं बन सकते। क्योंकि उनकी यह विचारधारा उनकी पाशविकता को प्रकट करती है। विश्वगुरू वही बन सकता है-जिसकी विचारधारा उत्कृष्ट हो और जो युद्घ को भी इसलिए लड़े कि एक व्यवस्था को विकृत करने वाले लोग समाप्त किये जा सकें।
भारत युद्घ में धर्म को अपनाकर अपने आप को विश्वगुरू का सबसे प्रबल दावेदार घोषित करता रहा और इसीलिए उसकी व्यवस्था को लोग अपने लिए प्रेरणादायक मानकर उसे अपना गुरू मानते रहे। गुरू का एक कार्य अपने व्यवहार व आचरण को पवित्र और नैतिक बनाकर अपने शिष्यों पर अपने व्यक्तित्व का प्रभाव डालना भी होता है। जिसे भारत ने करके दिखाया। उसकी व्यवस्था का और युद्घ में धर्म की पवित्र चिंतनपूर्ण अवधारणा का विश्व ने लोहा माना, इसीलिए विश्व का भारत ने स्वाभाविक नेतृत्व किया। आज भी हमारी सेना विश्व की सबसे उत्तम सेना इसलिए है कि वह किसी देश की संप्रभुता पर हमला नहीं करती, ना ही किसी देश के नागरिकों का नरसंहार करती है और युद्घ के समय भी नारियों का सम्मान करना वह भली प्रकार जानती है।
Tags: विश्वगुरू भारत विश्वगुरू भारत
शहर में एक वैधजी हुआ करते थे, जिनका मकान एक पुरानी सी इमारत में था। वैधजी रोज सुबह दुकान जाने से पहले पत्नी को कहते कि जो कुछ आज के दिन के लिए तुम्हें आवश्यकता है एक चिठ्ठी में लिख कर दे। पत्नी लिखकर दे देती । आप दुकान पर आकर पहले वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होती। उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही हुक्म के अनुसार में तेरी बंदगी छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। ज्योंही तू मेरी आज की जरूरी पैसो की व्यवस्था कर देगा। उसी समय यहां से उठ जाऊँगा .
और फिर यही होता। कभी सुबह साढ़े नौ, कभी दस बजे वैधजी रोगियों की समाप्ति कर वापस अपने घर चले जाते।
एक दिन वैधजी ने दुकान खोली। रकम का हिसाब के लिए चिठ्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आंखों के सामने तारे चमकते हुए नजर आ गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अपने तंत्रिकाओं पर काबू पा लिया। आटे दाल चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, बेटी के दहेज का सामान। कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की कीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा *'' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''*
एक दो मरीज आए थे। उन्हें वैधजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दुकान के सामने आकर रुकी। वैधजी ने कार या साहब को कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे।
दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैधजी ने कहा कि अगर आप अपने लिए दवा लेनी है तो उधर स्टूल पर आ जाये ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करे। वह साहब कहने लगे वैधजी मुझे लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं। लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आप की दुकान पे आया हूँ
आप को पिछली मुलाकात सुनाता हूँ फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहां आया था तो में खुद नहीं आया था ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि दिल्ली से सुंदरनगर अपनी कार में अपने पैतृक घर जा रहा था। यही दुकान के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर ठीक कराने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा हूँ। आप मेरे पास आए और दुकान की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें। मैं शुक्रिया अदा किया और कुर्सी पर आकर बैठ गया।
ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी। एक छोटी सी बच्ची भी यहाँ अपकी मेज के पास खड़ी थी और बार बार कह रही थी '' चलें नां, मुझे भूख लगी है। आप उसे कह रहे थे बेटी थोड़ा सब्र करो चलते हैं।
मैं यह सोच कर कि इतनी देर आप के पास बैठा हूँ। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी साहब में 5,6 साल से इंग्लैंड में हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चों के सुख से वंचित हूँ। यहां भी इलाज किया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत में निराशा के सिवा और कुछ नहीं देखा। आपने कहा मेरे भाई! माफ करो और अपने भगवान से निराश न हो । याद रखें उसके खजाने में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। औलाद, माल व इज्जत और ग़मी खुशी, जीवन मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। किसी वैधजी या डॉक्टर के हाथ नहीं होती और न ही किसी दवा में होती है। अगर होनी है तो भगवान के हुक्म से होनी है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे और साथ पुड़ीया भी बना रहे थे। सभी दवा आपने 2 भागों में विभाजित कर लिफाफा में डाली फिर मुझसे पूछा कि तुम्हारा नाम क्या है? मैंने बताया कि मेरा नाम कृष्णलाल है। आप ने एक लिफाफा पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखा। फिर दोनों लिफाफे एक बड़े लिफाफा रख दवा का उपयोग करने का तरीका बताया। मैंने बेदिली से दवाई ले ली क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पूछा कितने पैसे? आपने कहा बस ठीक है। मैं जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है।
मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी रकम वैधजी ने भगवान से मांगी थी वह गुरु ने दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में शर्मिंदा हुआ कि मेरे कितने घटिया विचार था और यह सरल वैधजी कितने महान व्यक्ति है।
मैं जब घर जा कर बीवी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। वैधजी आज मेरे घर में तीन तीन फूल खेल रहे हैं।
हम जीवन साथी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। जब भी इंडिया में छुट्टी में आया। कार उधर रोकी लेकिन दुकान बंद पाया। कल दोपहर भी आया था दुकानबंद थी। एक आदमी पास ही खड़ा हुआ था। उसने कहा कि अगर आप वैधजी से मिलना है तो सुबह 9 बजे अवश्य पहुंच जाएं वरना उनके मिलने की कोई गारंटी नहीं। इसलिए आज सवेरे सवेरे आपके पास आया हूँ।
वैधजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड सेटल हो चुका है। केवल हमारे एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ इंडिया में रहती है। हमारी भांजी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी थी। इस भांजी की शादी का सारा खर्च मैंने अपने ज़िम्में लिया था। 10 दिन पहले इसी कार में उसे मैं दिल्ली अपने रिश्तेदारों के पास भेजा कि शादी के लिए जो चीज़ चाहे खरीद ले। उसे दिल्ली जाते ही बुखार हो गया लेकिन उसने किसी को नहीं बताया। बुखार की गोलियाँ डिस्प्रिन आदि खाती और बाजारों में फिरती रही। बाजार में फिरते फिरते अचानक बेहोश होकर गिरी। वहां से उसे अस्पताल ले गए। वहां जाकर पता चला कि इसे 106 डिग्री बुखार है और यह गर्दन तोड़ बुखार है। वह कोमा की हालत ही में इस दुनिया से चली गयी ।
इसके मरते ही न जाने क्यों मुझे और मेरी पत्नी को आपकी बेटी का ख्याल आया। हमने और हमारे पूरे परिवार ने फैसला किया है कि हम अपनी भांजी के सभी दहेज का साज़-सामान आपके यहां पहुंचा देंगे। शादी जल्दी हे तो व्यवस्था खुद करेंगे और अगर अभी कुछ देर है तो सभी खर्चों के लिए पैसा आप को नकदी पहुंचा देंगे। आप को ना नहीं करनी। अपना घर दिखा दें ताकि माल ट्रक वहां पहुंचाया जा सके।
वैधजी हैरान-परेशान हुए बोले '' कृष्णलाल जी आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा, मेरा इतना मन नहीं है। मैं तो आज सुबह जब पत्नी के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी यहाँ आकर खोलकर देखा तो मिर्च मसाला के बाद जब मैंने ये शब्द पढ़े '' बेटी के दहेज का सामान '' तो तुम्हें पता है मैंने क्या लिखा। आप खुद यह चिठ्ठी जरा देखें। वहां उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि '' बेटी के दहेज '' के सामने लिखा हुआ था *'' यह काम परमात्मा का हे, परमात्मा जाने।''*
कृष्ण जी, यकीन करो आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि पत्नी ने चिठ्ठी पर बात लिखी हो और भगवान ने उसका उसी दिन व्यवस्था न कर दिया हो।
वाह भगवान वाह। तू महान है तू मेहरबान है। आपकी भांजी की मौत का दुःख है लेकिन ईश्वर के रंगों से हैरान हूँ कि वे कैसे अपने रंग दिखाता है।
वैधजी ने कहा जब से होश संभाला एक ही पाठ पढ़ा कि सुबह परमात्मा का आभार करो शाम को अच्छे दिन गुजरने का आभार करो , खाने समय उसका आभार करो ,
*आभार मेरे मालिक तेरा बहुत बहुत आभार ।*