Friday, November 23, 2012

सूखे पत्तो सी बेजान हो गयी है ,

सूखे पत्तो सी बेजान हो गयी है ,
 मद्धम मद्धम सांसे फिर भी चल रही है ,
सपने सारे टूट गए है,
फिर भी जीने कि एक आशा है ',
जानते हम भी ये मकान है रेत  का,
कब बिखर जाए ये पता नही ,
मै  भी खो जाऊँ  शायद इसी रेत में   कही ,
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे
जब कभी ढूंढें ये जमाना मुझे। ……………। ……… ................... …। …

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