Thursday, September 20, 2018

शूल चुभाए मन मे मेरे।।। नित जीवन मे घने अँधेरे।। सपनों का प्रतिकार किया।। ना मुझे कोई कभी प्यार मिला।। जीवन मरण का खेल यहाँ।। मेरा मन अब निरुत्तर है।। जैसे हृदय नही,, मेरा पत्थर है।। नित जिसको हर क्षण अपमान मिला,, इस धरा में कभी ना सम्मान मिला,, जीवन कुंठित,,मन भारी है।। मेरे कर्मो का क्या मिला सिला।। दुनिया से सहमा मैं पल पल।। तन मन कापे भय से थर थर,, अँखियों से बहता नीरस जल,, मेरा मन अब निरुत्तर है।। जैसे हृदय नही,, मेरा पत्थर है।। Nirmal EARTHCARE FOUNDATION www.earthcarengo.org

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