Thursday, June 28, 2018

सब्र नही है रह गया,, ऐ क्रोधातुर इंसान,,, विवेकहीन,,,अज्ञानी तू,, हर रिश्ते से अंजान,, माँ बाप सब भूलकर,,, अपने आपे में खोय,,, देख परायी चूपड़ी,,, तू ललचाये जीव,,, मन तेरा गन्दा हो गया,, नही रह गया तू इंसान,, आज ये तू जानले,, ये है कलयुग की पहचान,, Nirmal Earthcarefoundation Ngo

सब्र नही है रह गया,,
ऐ क्रोधातुर इंसान,,,
विवेकहीन,,,अज्ञानी तू,,
हर रिश्ते से अंजान,,
माँ बाप सब भूलकर,,,
अपने आपे में खोय,,,
देख परायी चूपड़ी,,,
तू ललचाये जीव,,,
मन तेरा गन्दा हो गया,,
नही रह गया तू इंसान,,
आज ये तू जानले,,
ये है कलयुग की पहचान,,

Nirmal Earthcarefoundation Ngo

Sunday, June 17, 2018

परिंदे भी आसमान की असीमित गहराइयों को नापकर ज़मीन पर ही आते है इसलिए फिकर किस बात की प्यारे??? Nirmal Earthcarefoundation Vriksharopan Ekabhiyaan

परिंदे भी आसमान की असीमित गहराइयों को नापकर ज़मीन पर ही आते है क्योंकि वो जानते है कि सुकून भटकने में नही,,मिलता है,,इसलिए जो भी असीमित से सीमित में रहकर जीता है वो खुशी रहता है,,और यही जिन्दगी की सच्चाई है ,,हां ये जरूर है कि अगर आप भटकने की बजाय उसमे घुलने की कोशिश करेंगे,,या उसको जानने की कोशिश करेंगे तो बेहतर सीखेंगे भी ,,और ,,ये जानने की इच्छा हर किसी मे होनी चाहिए क्योंकि इच्छाएं अविष्कार की जननी है,,,पर उनमें धैर्य होना जरूरी है नाकि तीव्रता अथवा उत्तेजना,,क्योकि यही से हमारे पतन का मार्ग शुरू होता है ,,जो हमे निराशावादी बनाता है,,,इसलिए अपनी मंज़िलो को पहचानिये,, उनसे सम्बध्द आंकड़ों को संग्रहित कीजिये और,,उनका विश्लेषण कीजिये ततपश्चात,, किसी निष्कर्ष पर जाइये,,इनमे सबसे महत्वपूर्ण,, आपका ,,धैर्य,,संयम,,और ,,सुरक्षा है,,अगर इनके साथ आगे बढ़ेंगे तो जरूर मंजिल आपकी होगी।।।

इसलिए फिकर किस बात की प्यारे???
Nirmal Earthcarefoundation Vriksharopan Ekabhiyaan

Thursday, June 14, 2018

अत्यन्त ही भृमित हैं,,राहें जिंदगी की,, कि मंजिले ले जाये किस ओर,,

अत्यन्त ही भृमित हैं,,राहें जिंदगी की,,
कि मंजिले ले जाये किस ओर,,
हर क़दम,, क़दम दर क़दम,, बढ़ते जा रहें है,,
जैसे टूटती जा रही है प्रतिपल जीवन की डोर,,
अत्यन्त ही भृमित हैं,,राहें जिंदगी की,,
कि मंजिले ले जाये किस ओर,,

ना रुके हैं,,
ना थके हैं,,
ना झुके हैं,,
फिर भी विचलित है मन,,
ये आज का दौर,,
है निराशा चारों ओर,,
जैसे थके हुए है ये नयन,,
ना ही गाँव है,,
ना वो लगाव है,,
ना बचा रिश्तों में वो झुकाव है,,
बस इसीलिए मन भटके वन,,वन,,
हाँ चारों तरफ छा गयी घटाए घनघोर,,

अत्यन्त ही भृमित हैं,,राहें जिंदगी की,,
कि मंजिले ले जाये किस ओर,,

अब खेलों के मैदान भी सूने है,,
घरों में मकान भी सूने है,,
लोगों के दिलों में दरारें है,,
जिसमे फूलों की जगह काँटे है,,
हम लड़ना चाहते हैं,,
पर समझना नहीं,,
क्योकि दिलों में प्यार नही,,सिर्फ और सिर्फ़ द्वेष है
ना दादा ,,दादी की लोरी बची
ना दादी नानी की कहानियां,,
सब मिल जाता है छोटे से खिलोने में,,
जिसको मोबाइल हम कहते है,,
ये खिलौना है,,,या हम बन गए खिलौने,,
बस इसीलिए पदचिन्हों को देखकर,,
जाने बढ़ रहे किस ओर,,

अत्यन्त ही भृमित हैं,,राहें जिंदगी की,,
कि मंजिले ले जाये किस ओर,,

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www.earthcarengo.org

दिल की मन्ज़िले भी अजीबोगरीब है कभी पास नज़र आती हैं तो कभी मीलों दूर निकल जाती है Nirmal Earthcarefoundation Vriksharopan Ekabhiyaan

दिल की मन्ज़िले भी अजीबोगरीब है कभी पास नज़र आती हैं
तो कभी मीलों दूर निकल जाती है
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Friday, June 8, 2018

जिनके आने कीख़ुशी में हम दो जहाँ लूटा देते है और वही अपने हमारे बुढ़ापे में हमारा सहारा बनने की बजाय हमे बोझ समझ कर निकाल देते है #ऐसा क्यों

जिनके आने कीख़ुशी में हम दो जहाँ लूटा देते है
और वही अपने हमारे बुढ़ापे में हमारा सहारा बनने की बजाय हमे बोझ समझ कर निकाल देते है
#ऐसा क्यों

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स्वार्थ,,,और परमार्थ में क्या अंतर है आज की दुनिया के लिए #एक जटिल प्रश्न

स्वार्थ,,,और
परमार्थ में क्या अंतर है
आज की दुनिया के लिए
#एक जटिल प्रश्न

Nirmal earthcarefoundation

आज की दुनिया में कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नही है,,, कोई सच में,,,तो कोई सन्देहवस

आज की दुनिया में कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नही है,,,
कोई सच में,,,तो कोई सन्देहवस
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