कभी कभी मेरा अन्तर्मन इतना विचलित हो है कि कदाचित मुझे ये समझ ही नहीं आता कि मैं क्या करू , रोऊ या फिर हंसू क्योकि आज का ये स्वार्थी देखकर मन में पता नहीं कैसा अंतर्द्वंद उठता है कभी कभी मन में ये ख्य़ाल है कि कौन सी दुनिया में आ गया हूँ
हे प्रभू कृपया मेरा मार्गदर्शन करे
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