Tuesday, September 15, 2015

धर्म की स्थापना हेतु होने वाला महाभारत है

हर तरफ इक शोर है
बस मैं ही मैं हु मैं हु
और कोई नही
ये हमारा अहम् है
या स्वार्थ
या हम अपने धर्म से विमुख
आखिर किस चीज का इन्तजार है
या छाने वाला पाप का अन्धकार है
कुछ तो है ही
जो धीरे धीरे पनप रहा
या ये काले युग का प्रताप है
जो हम काले होते हुए भी
धर्म और न्याय की बाते करते है
या ये सिर्फ आडम्बर है
और दिखावा है
इतिहास यही कहता है
की हम जब हद से ज्यादा स्वार्थी हो जाते है
तो हमारी आत्मा में पाप का प्रवेश हो जाता है
इसीलिए लग रहा
होने वाला महाभारत है

इसीलिए लग रहा
होने वाला महाभारत है